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________________ श्रीसीताजीनी समाय। मदोदरी कहे आपनो, ऊगरवानो आरो काई। . एवी वाणी राणी कहे, आज्या बिभीषण भाई ॥६॥ भाई सीताने दीजीए, बेन करीने पाछी। रामचंद्रजीसुं हेते रहीए, जगमा वात लागे आछी ॥७॥ बिभीषण कहे सुणो तातजी, सीता जगतनी माता । सत्य शोयलथी चूके नहीं, जो करो कोडी ज वाता ॥८॥ हनुमंतवीर विरोधीया, सुग्रीव हता बहु सारा । ते पण तारी अनीतिथी, तें कर्म कयाँ बहु कारा ॥९॥ ते कुळने कलंक लगाड़ीयो, तारे मारी छे छांय । हजीय कहुं छु बे कर जोडीने, मानी ल्यो मुज भाई ॥१०॥ का रे न माने लंकापति, लेख लख्या विधाता । कर्मगति एनी बांकडी, घणुं कर्तुं शिरनामी ॥११॥ हाक मारीने ऊठीयो, जा तुं नजरथी दूर । नहीं तो तुजने हाथे हणुं, जा तुं रामने हजूर ॥१२॥ त्यांथी बिभीषण चालीया, चाल्या रामनी पास । विगत सर्वे संभळावीने, रह्या रामनी पास ॥१३॥ किष्किंधाथी लश्कर ऊपडयुं, पछी को लंकामां एलाण। षट्मासे लगे जूझीया, पछे गया रावणना प्राण ॥१४॥ लडतां लक्ष्मण जीतीया, वयों जयजयकार । सीताजीने घेर लेइ आवीया, अयोध्या नगरी मोझार ॥१५॥ धन्य धन्य सती सीताने, धीरज धरी संजम लीधो । बारमे देवलोके ईन्द्र थया, राम ज्ञानीए कीधो॥ धन्य धन्य सती सीताने ॥१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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