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________________ मवस्मरणादिसहे मारे गढ कांगरा बहु भारी छे, मारे बेठक तो बहु सारी छे, मारे अक्षौहिणी लश्कर भारी छे, सुणि०॥२॥ मारे ऐरावण आकाश वसे, मारे बलभद्र पाताल क्से, मारे नितनित राक्षसिणी खबर करे, सुणि०॥३॥ मारे वा वासीदं काढे छे, मारे जम तो पाणी ताणे छे, मारे चंद्र सूर्य दोय छत्र धरे, सुणि०॥४॥ विद्याधरनी बातो जाणीने, में नवग्रह बांध्या ताणीने, हरी लाग्यो राषवराणीने, सुणि०॥५॥ दाल - चोथी। रावण कहे सुणो मंदोदरी, मत है९ हार । सोनाना गढने कोट छे, नहीं जीते दशरथनो छइयो । राणीजी दृढ मन राखीए । कुंभकर्ण सरीखा बांधवा, ईन्द्रजीत सरीखा पुत्र । समरथ सेना मारे घणी, नहीं जीते दशरथनो पुत्र ॥१॥ रावण कहे सुण मंदोदरी, हुं युद्ध करुं तुं जोजे । ए छे वनना भीलडा, मारी झपाट न झीले ॥२॥ रावण कहे सुण मंदोदरी, आपणे अभिमानी छीए । लीधी वात नवि मूकीए, पग पाछा नवी दइए ॥३॥ मंदोदरी कहे अहंकारथी, चक्रवर्ती वासुदेव जेवा । पस्तावो करी नरके गया, जुओ दुःख पाम्या केवा ॥४॥ सुतो सिंह जगाडीयो, छंछेड्यो काळो नाग । सीताने लेइ घेर आवीया, प्रगट्यां पूर्वनां पाप ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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