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________________ नवस्मरणाविसहे सीमंधरजिनआलोयणस्तवन । आलोयण हो बोल बे कर जोडी ने, सुणो श्रीसीमंधर देव जगजीवना। प्रभु साखे हो मिच्छामि दुक्कड तेह जो, वली होजो तुम पाय सेव जगजीवना ॥१॥ भव माहे भमतां इणे जीवे, कीधा करम अनंत जगजीवना । जीभे करी हो कहेतां पार न पामही, ते तुंजाणे भगवंत जगजीवना ॥२॥ प्रभु आगे हो कपट कीसुं राखीए, कपटे न छूटे करम जगजीवना। कीधां पातक पंचेन्द्री तणे वसे, तुं जाणे ते मर्म जगजीवना ॥३॥ षुढवी अप तेउ वाउ वनस्पति, वली छट्ठी त्रसकाय जगजीवना । भवोभव हो तेहनी कीधी विराधना, लाख चोरासी मांहि जगजीवना ॥४॥ क्रोध लोभे हो भये तथा हसवे करी, में बोल्या मृषावाद जगजीवना। अदत्तादान हो लीधां में लोभे करी, वली मैथुन ने उन्माद जगजीवना ।।५॥ नवविधनो परिग्रह मेलो कारमो, जिहां पाप तणो नहिं पार जगजीवना । मनरंगे हो रात्रिभोजन में कार्यों, वली अभक्ष्य भख्यां बहु वार जगजीवना ॥६॥ ज्ञान दर्शन चारित्र जे में विराधियां, वली कीधा व्रतमंग जगजीवना । द्वेष धरी धर्मनी निंदा करी, सात व्यसन सेव्यां मनरंग जगजीवना ||७|| सुवावडे रांधण लिंपणे, बोल्या बहु आरंभ जगजीवना । करमे करी ने हो गुरुमुखे आलोयां नहीं, मन मांहि राख्यो दंभ जगजीवना ॥८॥ विषये करी कपटकला केलवी, ते कहेतां आवे लाज जगजीवना । चोथे व्रत दूषण लाग्यां जे मुने, ते तो जाणो छो जिनराज जगजीवना ।।९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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