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जयतिहुमणस्तोत्रम् । तुह जिण ! सरणरसायणेण लहु हुंति पुणण्णव, जयधनंतरि ! पास! महवि तुह रोगहरो भव ॥ ३ ॥ विजा-जोइस-मंत-तंत-सिद्धिउ अपयत्तिण, भुवणब्भुउ अविह सिद्धि सिज्झहि तुह नामिण । तुह नामिण अपवित्तओ वि जण होइ पवित्तउ, तं तिहुअणकल्लाणकोस! तुह पास ! निरुत्तउ ॥४॥ खुद्दपउत्तइ मंत-तंत-जंताइ विसुत्तइ, चर-थिरगरल-गहुग्गखग्गरिउवग्ग विगंजइ । दुत्थियसत्थ अणत्थपत्थ नित्थारइ दय करि, दुरिअइ हरउ स पासदेव दुरिअक्करिकेसरि ॥५॥ तुह आणा थंभेइ भीमदप्पुद्धरसुरवररक्खसजक्खफणिंदविंदचोरानलजलहर । जल-थलचारिरउद्दखुद्दपसुजोइणिजोइअ, इअतिहुअणअविलंघिआण!जय पास!सुसामि । पत्थियअत्थ अणत्थतत्थ भत्तिभरनिन्भर, रोमंचंचिअचारुकाय किन्नर-नर-सुरवर । जसु सेवहि कमकमलजुअल पक्खालिअकलिमलु, सो भुवणत्तयसामि पास मह मद्दउ रिउबलु ॥७॥ जय जोइअमणकमलभसल! भयपंजरकुंजर!, तिहुअणजणआणंदचंद ! भुवणत्तयदिणयर !। जय मइमेइणिवारिवाह ! जयजंतुपिआमह!, थंभणअहिअ ! पासनाह ! नाहत्तण कुण मह ॥८॥
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