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________________ नयारणादिन इअ गुरु श्रेलरमुत्तं, लहु समओ ६ भावु सव्वहिं खइओ ७॥ चउ दस बीसा वीसप्पहुत अहस्सयं कमसो ॥२९॥ सम थोव समा संखागुणिआ इय भणिअणंतरा सिद्धा। अह उ परंपरसिद्धा, अप्परहुं मुत्तु भणिअस्था ॥३०॥ सामुद्द दीय जल थल, थोवा संखगुण थोव संखगुणा। उड्ड अह तिरिअलोए, थोवा दुन्नि पुण संखगुणा॥३१॥ लवणे कालोअम्मि य, जंबुद्दीवे अ धायईसंडे । पुक्खरबरदीवड्ढे, कमलो थोवा उ संवगुणा ॥३२॥ हिमवंते हेमवए, महहिमवे कुरुसु हरि निसड भरहे। संखगुणा य विदेहे, जंबुद्दीवे समा सेसे ॥३३॥ बुल्ल महहिमव निसढे, हेम कुरू हरिसु भारह विदेहे। चउ छटे साहीया, धायइ सेसा उ संखगुणा ॥३४॥ मुक्खरवरे वि एवं, चउत्थठाणम्मि नवरि संखगुणा। एसुं संहरणेणं, सिझंति समा य समगेसु ॥३५॥ जंधु निसहत मीसे जे भणि पुषमहिअ बीअहिमे। दुति महहिम हिमवंते, निसढ महाहिमव विमहिमवे ॥३६॥ तिअनिसहे विअकुरुसुं हरिसु अ तह सइअहेम-कुरु-हरिसु। दुदु मंख एग अहिआ, कम भरह विदेहतिग संखा १ ॥३७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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