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________________ नवस्मरणाविसबहे भरत राजाए सोनानो प्रासाद कराव्यो तेमां रत्नमयी प्रतिमा चोवीस तीर्थंकरोनी भरावी तेने मारी क्रोड०॥२०॥ ____ गौतमस्वामिए प्रभुनी आज्ञा लेइ पोतानी लब्धिए करी अष्टापदनी यात्रा करी तथा तिर्यगजुंभक देवताने प्रतिबोध करीने पंदरसें तापसोने खीरनां पारणां कराव्यां, ते पण फक्त एक ज पात्रामां थोडी खीर वहोरी लाव्या, पण ते पात्रामा पोतानो अंगुठो राख्यो तेथी तेनी लब्धिए करीने एटला बधा तापसोने खीरथी तृप्त कर्या अने ते तापसोने एवं आश्चर्य जोई खीर भोजन करतां तेमांना पांचसोने केवलज्ञान थयुं, तथा प्रभु पासे आवां रस्तामां भावना भावतां बाकीना पांचसोने केवलज्ञान थयुं, बाकीना तापसोने प्रभुनुं समवसरण जोतांज केवलज्ञान थयु. माटे एवा लब्धिवंत गौतमस्वामि तथा पंदरसे तापसोने मारी क्रोड०॥२१॥ ____गोखले गभारे जालीए मालीए जलमां मोतीमां माणिकमां पानामां पुस्तकमां धातुमां काष्ठमां चित्रामणमां परवालामा भोंयमां, भंडारमा ऊर्ध्व अधो तिर्छा लोकने विषे अंगुठाथी मांडी पांचसें धनुष्यप्रमाण जे कोइ जिनेश्वर भगवाननी नानी मोटी प्रतिमा होय तेने मारी क्रोड०॥२२॥ चोसठ इंद्रना पूजनीक, बार गुण सहित, चोत्रीस अतिशयें करी विराजमान, पांत्रीस गुणयुक्त, वाणीए करी भविक जीवोने प्रतिबोधे, सर्वत्र सर्व वस्तुना देखणहार, त्रिभुवनमा मांगलिकदायक, कल्पवृक्षसमान सात भयथी रहित, त्रिभुवन गुरु, परम ठाकुर, दयावंत, जगतना बांधव, संसार समुद्रमां द्वीप समान, त्रणे भुवनमां दीपक समान, जगतमां चिंतामणिरत्नसरिखा, त्रिभुवनमा मुगट सरिखा जिनराज, मोक्षमार्गने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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