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________________ नवस्मरणादिसलहे निराधारने द्यै आधार, भवसागर ऊतारै पार । आरतियानी आरतभंग, धरै ध्यान ते लहै सुरंग ॥४५॥ समर्या सहाय दीयै यक्षराज, तेहना मोटा अछै दिवाज । बुद्धि हीगने बुद्धि प्रकाश, गूंगाने 2 वचनविलास ॥४६॥ दुखियाने सुखनो दातार, भयभंजण रंजण अवतार । बंधन तूटै बेडी तणा, श्रीपार्श्वनाम अक्षर समरणा ॥४७॥ (दोहा) श्रीपार्श्वनाम अक्षर जपै, विश्वानर विकराल । हस्तियूथ दूरे टलै, दुर्द्धर सिंह सियाल ॥४८॥ चोरतणा भय चूकवे, विष अमृत उडकार । विषधरनो विष ऊतरै, संग्रामे जयजयकार ॥४९॥ रोग सोग दालिद्र दुख, दोहग दूर पुलाय । परमेसर श्रीपासनो, महिमा मन्त्र जपाय ॥५०॥ (कडखानी चाल) ॐ जितुं 3 जि तुं ॐ जि उपशम धरी, 3 ही श्री पार्श्व अक्षर जपते। भूत ने प्रेत झोटिंग व्यंतरसुरा, उपसमै वार इकवीस गुणते ।०॥५१ दुर्द्धरा रोग सोगा जरा जंतु ने, ताव एकांतरा दुत्तपंतै । गर्भबंधन त्रणं सर्प विच्छू विषं, बालिका बाल मेवा झखंते नि॥५२॥ साइणी डाइगी रोहिणी रंधणी, फोटका मोटका दोष हुँते । दाढं ऊंदरतगी कोल नोला तणी, स्वान सीयाल विकराल दंते ॥॥५३॥ धरणेंद्र पद्मावती समर शोभावती, वाट आघाट अटवी अटतै । लक्ष्मी-लीला मिलै सुजस वेला वलै, सयल आशा फलै मन हसंतेनि०॥५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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