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________________ ७८ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे पच्छिम उत्तर दाहिण, अहिया १५ थोवा य जोइसा तुल्ला। पुञ्चावरदिसि दाहिण, उत्तर अहिया कमा भणिया १६ ॥७॥ पढमचउकप्पदेवा, सव्वत्थोवा य पुत्र्वपच्छिमओ । उत्तर असंख दाहिण अहिया तुहमयविऊ बिंति ||८|| भाइ कप्पचउगे, पुव्युत्तरपच्छिमासु थोव समा । दाहिण संखा तत्तो, उवरिमदेवा य सम सव्वे १७ ॥९॥ धोवा पुग्गल उडूढं, अहिय अहे तह असंख तुल्ला य । उत्तरपुरच्छिमेणं, दाहिणपचच्छिमेण तओ ॥१०॥ दाहिणपुरच्छिमेणं, उत्तरपञ्चच्छिमेण अहिय समा । पुवि असंख अहिया, पच्छिम तह दाहिणुत्तरयो ॥ ११ ॥ अप्प बहुत्त सरूवं, इय दिहं केवलेण नाह ! तुमं । अह तह कुणसु पसायं, अहमवि पासेमि जह सक्ख ॥ १२॥ इय चउदिसासु भमिओ, तुह आणावज्जिओ य वीर ! अहं । गणिसमयसुंदरेहिं, थुणिओ संपइ सिवं देसु ॥१३॥ लध्वल्पबहुत्वम् । पे-पु-द-उकमसो जीवा जल-वण- विगला पंणिंदिया चैव । द-उ-पू-पासुं पुढवी, द- उसम तेऊ पु-पासु कमा ॥ १ ॥ १ प० - पश्चिमा दिक् । पु० पू० – पूर्वा दिक् । ६० -- दक्षिणा दिक् । उ०- -उत्तरा दिक् ॥ २ संजय संज्ञिपञ्चेन्द्रिया इत्यर्थः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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