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________________ श्रीशत्रुअयलघुकल्पः। पडिमं चेइहरं वा सित्तंजगिरिस्स मत्थए कुणइ । भुतूण भरहवासं निवसइ सग्गे निरुवसग्गे ॥१५॥ नवकार पोरिसीए पुरिमड्ढेगासणं च आया। पुंडरियं च सरंतो फलकंखी कुणइ अभतटुं ॥१६॥ छट्ट-अट्ठम-दसम-दुवालसाण मासऽद्धमासखवणाणं । तिगरणसुद्धो लहई सित्तुजं संभरंतो अ॥१७॥ छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं तु सत्त जताई। जो कुणई सेत्तुंजे तइयभवे लहइ सो मुक्खं ॥१८॥ अज वि दीसइ लोए भत्तं चइऊण पुंडरीयनगे। सग्गे सुहेण वच्चइ सीलविहूणो वि होऊणं ॥१९॥ छत्तं-झयं-पडागं-चामर-भिंगार-थालदाणेणं । विजाहरो अ हवई तह चक्की होइ रहदाणा ॥२०॥ दस वीस तीस चत्ता पन्नासा पुप्फदामदाणेण। लहई चउत्थ-छ?-ऽट्ठम-दसम-दुवालसफलाइं ॥२१॥ धूवे पक्खुववासो मासक्खमणं कपूरधूवम्मि । कित्तिय मासक्खमणं साहू पडिलाभिए लहइ ॥२२॥ न वि तं सुवन-भूमी भूसणदाणेण अन्नतित्थेसु । जं पावइ पुण्णफलं पूआ-न्हवणेण सित्तुंजे ॥२३॥ कंतार-चोर-सावय-समुद्द-दारिद्द-रोग-रिउरुद्धा। मुच्चंति अविग्घेणं जे सेत्तुजं धरंति मणे ॥ २४ ॥ सारावलीपयनगगाहाओ सुअहरेण भणिआओ। जो पढइ गुणइ निसुणइ स लहइ सित्तुंजजत्तफलं ॥२५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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