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नवस्मरणादिसङ्ग्र
तुहु सामिउ तुहु माय बप्पु तुहु मित्त पियंकरु, तुहु गइ तुहु मह तुहु जि ताणु तुहु गुरु खेमंकरु | हउं दुहभरभारिउ वराउ राउल निग्भग्गह, लीणउ तुह कमकमलसरणु जिण ! पालहि चंगह ॥ २० ॥ पइ किवि कय नीरोय लोय किवि पाविय सुहसय, किवि महमंत महंत केवि किवि साहियसिवपय । किवि गंजियरिउवग्ग केवि जसधवलिअभूअल, मइ अवहीरहि केण पास ! सरणागयवच्छल ! १ ॥ २१ ॥ पच्चुवयारनिरीह ! नाह ! निष्पण्णपओअण !, तुह जिण ! पास ! परोवयारकरणिक्कपरायण ! | सत्तु[मित्तसमचित्तवित्ति ! नय-निंदयसममण !, मा अवहीर अजुग्गओ वि मई पास ! निरंजण ! ||२२|| हवं बहुविहदुहतत्तगत्तु तुह दुहनासणपरु, हउं सुयाह करुणिक्कठाणु तुहु निरु करुणायरु । हउं जिण! पास ! असामिसाल तुहु तिहुअणसामिअ, जं अवहीरहि मई झंखंत इय पास ! न सोहिय ॥ २३ ॥ जुग्गाजुग्गविभाग नाह ! न हु जोयहि तुह सम, भुवणुवयार सहावभाव करुणारससत्तम ।
समविसमहं किं घणु नियइ भुवि दाह समंतर, इय दुहिबंधव ! पासनाह ! मह पाल थुणंतउ ||२४| न य दीणह दीणय मुयवि अन्नुवि किवि जुग्गय, जं जोइवि उवयारु करहि उवयारसमुज्जय ।
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