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________________ जयतिहु अणस्तोत्रम् | जायइ फलभरभरिय हरियदुहदाह अणोवम, इय मइमेइणिवारिवाह ! दिस पास ! मई मम । ॥ १४ ॥ कयअविकलकल्लाणवल्लि उल्लूरियदुहवणु, दावियसग्गऽपवग्गमग्ग दुग्गइगमवारणु । जयजंतुह जणएण तुल जं जणिय हियावहु, रम्मु धम्मु सो जयउ पास जयजंतुपियामहु ॥ १५ ॥ भुवणारण्णनिवास दरिय परदरिसणदेवय, जोइणि-पूअण - खितवाल - खुद्दासुर-पसुवय । तुह उत्त सुन सुट्ट अविसंटुलु चिट्ठहि, इय तिहुअणवणसीह ! पास ! पावाइ पणासहि ॥ १६ ॥ फणिफणफार फुरंतरयणकररंजिअनहयल !, फलिणीकंदलदल-तमाल - निलुप्पलसामल ! | कमठासुरउवसग्गवग्गसंसग्गअगंजिअ !, जय पच्चक्ख जिणेस ! पास ! थंभणयपुरट्ठिअ ! ॥ १७ ॥ मह मणु तरलु पमाणु नेय वाया वि विसंटुलु, न य तणुरवि अविणयसहावु आलसविहलंघलु । तुह माह पमाणु देव ! कारुण्णपवित्त, इय मइ मा अवहोरि पास ! पालिहि विलवंत ॥१८॥ किं किं कप्पिड ण य ? कलुणु किं किं व न जंपिउ ?, किं व न चिट्ठिउ कि देव !, दीणयमवलंबिउ ? | कासु न किय निष्फल्ल लल्लि अम्हेर्हि दुहन्तिहि ?, तह विन पत्त ताणु किं पिपई पहु ! परिचत्तिहि ॥ १९ ॥ Jain Education International ३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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