SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० नवस्मरणादिसङ्ग्रहे चउदह सय बारोत्तर वरसे, गोयम गणहर केवळ दिवसे, किउं कवित्त उपगार परो । भादिहि मंगल एह भगीजे, परम महोच्छव पहिलो लीजे, ऋद्धि वृद्धि कल्याण करो ||४५ ॥ धन्य माता जिणे उदरे धरिया, धन्य पिता जिण कुल अवतरिया, धन्य सहगुरु जिणे दिक्खिया ए । विनयवंत विद्याभंडार, जस गुण कोइ न लब्भे पार, विद्यावंत गुरु वीनवे ए ॥ ४६ ॥ गौतमस्वामितणो ए रास, भणतां सुणतां लीलविलास, सासय सुखनिधि संपजे ए । गौतम स्वामिनो रास भणीजे, चउविह संघ रलियायत कीजे, ऋद्धि वृद्धि कल्याण करो || ४७ ॥ क्षेमवर्धनकृत मंगलपचीशी । चोपाई सरसती माता सारज करो, अमृत वचन मुझ हिडे धरो । पंच परमेष्ठिने करो प्रणाम, वळि संभारो सहगुरुनाम ॥ १॥ मंगलिक चार कह्यां जिनराय, तस समरण कीजे चित्त लाय । अतीत अनागत ने वर्तमान, बहोतेर जिननुं घरजो ध्यान ||२|| विहरमान विचरे जिन वीरा, तस नामे सवि फळे जगीस । शाश्वता जिन समरो चार, सरवाळे छन्नुं निरधार ॥३॥ ए जिनवर गुणग्राम, प्रभात समे नित्य लीजे नाम । वे बीजो मंगलिक ए सार, पुंडरीक आदे गणधार || ४ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy