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________________ श्रीगौतमस्वामिनो रास । पंचसया शुभ भाव, उज्ज्वळ भरियो खीर मिसे, साचा गुरु संजोग, कवळ ते केवळ रूप हुआ ॥२९॥ पंचसया जिणनाह, समवसरण प्राकार त्रय, पेखवि केवळनाण, उपन्नो उज्जोयकर । जाणे जिणवि पीयूष गाजंती घण मेघ जिम, जिणवाणी निसुणेइ, नाणी हुआ पंच सया ॥३०॥ (वस्तु छंद) इणे अनुक्रमे इणे अनुक्रमे, नाणसंपन्न, पन्नरह सय परवरिय, हरिय दुरिय जिणनाह वंदइ, जाणवि जगगुरु वयण, तिह नाण अप्पाण निदइ। चरम जिणेसर इम भणइ, गोयम म करीस खेउ । छेही जइ आपण सही, होसुं तुल्ला बेउ ॥३१॥ (भाषा) सामीओ ए वीरजिणंद, पूनिम चंद जिम उल्लसिअ, विहरिओ ए भरहवासंमि, वरिस बहोतेर संवसिअ । ठवतो ए कणय पउमेसु, पाय कमळ संघहि सहिम, आवीओ ए नयणाणंद, नयर पावापुरी सुरमहिय ॥३२॥ पेखियो ए गोयम सामी, देवशर्मा प्रतिबोध करे, आपणो ए त्रिशलादेवी-नंदन पहोतो परमपए । वळतां ए देव आकास, पेखवि जाणीय जिण समे ए, तो मुनि ए मन विखवाद, नादभेद जिम उपनो ए ॥३३॥ कुण समे ए सामिय देखी, आप कन्हें हुं टालिओ ए, जाणतो ए तिहुअणनाह, लोकविवहार न पालिओ ए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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