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________________ नवस्मरणादिसङ्कहे अति भलु ए कीधलं सामी, जाणिउं केवळ मागशे ए, चिंतविउं ए बाळक जिम, अहवा केहे लागशे ए ॥३४॥ हुं किम ए वीरजिणंद, भगते भोळो भोळव्यो ए, आपणो ए अविहड नेह, नाह न संपे साचल्यो ए। साचो ए तुही वीतराग, नेह न जेने लालिओ ए, इण समे ए गोयम चित्त, राग वैरागे वाळिओ ए ॥३५॥ आवतुं ए जे उलट्ट, रहेतुं रागे साहिउं ए, केवळु ए नाण उप्पन्न, गोयम सहेजे उम्माहिओ ए । तिहुअण ए जय जयकार, केवळमहिमा सुर करे ए, गणहर ए करिय वखाण, भवियण भव जिम निस्तरे ए ॥३६॥ (वस्तु छंद) पढम गणहर पढम गणहर, वरस पचास, गिहिवासे संवसिय, तीस वरिस संजम विभूसिय, सिरि केवळनाण पुण, बार वरिस तिहुयण नमंसिअ । रायगिहि नयरीहिं ठविभ, बाणु वय वरिसाओ । सामी गोयम गुणनिलो, होशे शिवपुर ठाओ ॥३७॥ (भाषा) जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमह वने परिमल महके, जिम चंदन सुगंध निधि । जिम गंगाजळ लहेरे लहके, जिम कणयाचल तेजे झळके, तिम गोयम सौभाग्यनिधि ॥३८॥ जिम मानससर निवसे हंसा, जिम सुरवरसिरि कणयवतंसा, जिम महुयर राजीववने । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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