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________________ १२२ नवस्मरणादिसावे पण चउ ति दुयअणिदिअ, एगिदिय सेंदिया कमाहुति। थोवातिअत्ति अहिया, दोऽणंतगुणा विसेसहिआ॥४२॥ तस तेउ पुढवि जल वाउकाय अकाय वणस्सइसकाया। थोव असंखगुणाऽहिय, तिन्नि उदोऽणंतगुण अहिआ॥४३॥ जीवा पुग्गल समया, दव्व पएसा य पजवा चेव । थोवाऽणताऽणंता, विसेसमहिया दुवेऽणंता ॥४४॥ दव्वे खित्ते काले, भावे अपएस पुग्गला चउहा। सपएसा वि य चउहा, अप्पबहुत्तं च एएसि ॥४५॥ दव्वेणं परमाणू, खित्तेणेगप्पएसमोगाढा। कालेणेगसमइया, भावेणेगगुणवण्णाई ॥४६॥ अपएसगा उ एए, विवरिय सपएसगा सया भणिया। भा-का-द-खि-अपएसा,थोवा तिनि य असंखगुणा॥४७॥ खित्ते अपएसगा उ, खित्ते सपएस असंखगुणिया उ। दव्व-क-भा-सपएसा, विसेससहिया सुए भणिया ॥४८॥ कड तेउए य दावर, कलिउय तह संहवंति जुम्मा उ। अवहीरमाण चउ चउ, चउ ति दुगेगा उचिट्ठति ॥४९॥ धं-ज-व-स-परिव-वि-ति-च-समुन पणथ-ख-ज-न-भ-व-र-वि-न-सु-स-पमुति अ। १५०-धरा, ज०-जल, व०-वह्नि, स०-समीरणवायु, परिव.प्रत्येकवनस्पति, बि०-द्वीन्द्रिय, ति•-त्रीन्द्रिय, च०-चतुरिन्द्रिय, समुन.सम्मूर्छिमनर, पणथ०-पञ्चेन्द्रियस्थलचर, ख०-खचर, ज०-जलचर, नर-नारक, म.-भवनपति, व०-व्यन्तर, र०-रवि, वि०-विधु-चन्द्र, न.नक्षत्र, सु० -सुरवैमानिक स०-समुद्र, पमुति -पश्चेन्द्रियसम्मूर्छिमतियश्च, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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