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नवस्मरणादिसावे पण चउ ति दुयअणिदिअ, एगिदिय सेंदिया कमाहुति। थोवातिअत्ति अहिया, दोऽणंतगुणा विसेसहिआ॥४२॥ तस तेउ पुढवि जल वाउकाय अकाय वणस्सइसकाया। थोव असंखगुणाऽहिय, तिन्नि उदोऽणंतगुण अहिआ॥४३॥ जीवा पुग्गल समया, दव्व पएसा य पजवा चेव । थोवाऽणताऽणंता, विसेसमहिया दुवेऽणंता ॥४४॥ दव्वे खित्ते काले, भावे अपएस पुग्गला चउहा। सपएसा वि य चउहा, अप्पबहुत्तं च एएसि ॥४५॥ दव्वेणं परमाणू, खित्तेणेगप्पएसमोगाढा। कालेणेगसमइया, भावेणेगगुणवण्णाई ॥४६॥ अपएसगा उ एए, विवरिय सपएसगा सया भणिया। भा-का-द-खि-अपएसा,थोवा तिनि य असंखगुणा॥४७॥ खित्ते अपएसगा उ, खित्ते सपएस असंखगुणिया उ। दव्व-क-भा-सपएसा, विसेससहिया सुए भणिया ॥४८॥ कड तेउए य दावर, कलिउय तह संहवंति जुम्मा उ। अवहीरमाण चउ चउ, चउ ति दुगेगा उचिट्ठति ॥४९॥ धं-ज-व-स-परिव-वि-ति-च-समुन
पणथ-ख-ज-न-भ-व-र-वि-न-सु-स-पमुति अ। १५०-धरा, ज०-जल, व०-वह्नि, स०-समीरणवायु, परिव.प्रत्येकवनस्पति, बि०-द्वीन्द्रिय, ति•-त्रीन्द्रिय, च०-चतुरिन्द्रिय, समुन.सम्मूर्छिमनर, पणथ०-पञ्चेन्द्रियस्थलचर, ख०-खचर, ज०-जलचर, नर-नारक, म.-भवनपति, व०-व्यन्तर, र०-रवि, वि०-विधु-चन्द्र, न.नक्षत्र, सु० -सुरवैमानिक स०-समुद्र, पमुति -पश्चेन्द्रियसम्मूर्छिमतियश्च,
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