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________________ निवेदन प्रत्येक समझदार मनुष्यको अपने सांसारिक कार्यों के अतिरिक्त पूजन-यजनादि कर्तव्य भी आवश्यक होता है । उस समय अपने आराध्य देवोंके गुणप्रामादिख्यापक स्तोत्र - स्तवनादिका पाठ भी यथासमय यथामति करना ही होता है । अतः स्तवन- स्तोत्र - स्तुति आदिके संग्रहरूप पुस्तकोंकी आवश्यकता भी रहती है, फलतः आज अनेक जनों द्वारा प्रकाशित एतद्विषयक विविध ग्रंथ उपलब्ध है । प्रस्तुत प्रयास भी तद्योग्य महानुभावों की सुविधाके लिए किया है । इस पुस्तक में अनेक विद्वान् मुनिओने जिन स्तोत्रोंका महत्त्वपूर्ण प्रभाव दिखलाया है और अनेक महानुभावोंने जिनका प्रभावका साक्षात्कार किया है एसे नवस्मरण तथा अन्य भी महाप्राभाविक स्तोत्रादि दिएं है । इनमें निबद्ध महाप्राभाविक मंत्राक्षरोंके प्रभाव से पाठकको अपनी योग्यतानुसार विविध लाभ होता है, यह बात तो एक आनुषंगिक फलात्मक है, मुख्यतया तो इन स्तुतिपाठोंसे अपने आराध्यपाद तीर्थाधिपति भगवंतोकी निष्काम स्तवना करके अपने आपको धन्य मानना वही है । तथाप्रकारके अभ्यासिवर्गका ख्याल रख कर प्रस्तुत प्रकाशनमें अति उपयोगी छोटे छोटे प्राचीन प्रकरण भी दिए है, जिनका प्रकाशन कई वर्ष पूर्व श्रीआत्मानन्द जैनसभा - भावनगरसे हुआ था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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