________________
(
19
)
सार योग का विषयांकन •५ होता है। अतः योग का विषयांकन हमने •४०५ किया है। योग के अन्तर्गत आने वाले विषयों के आगे दशमलव का चिह्न है ।
योग कोश भी लेश्या कोश की तरह हमारी कोश परिकल्पना का परीक्षण (ट्रायल) है । इस परिकल्पना में पुष्ठता तथा हमारे अनुभव में यथेष्ठ समृद्धि हुई है।
आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि प्रणीत षट् खंडागम दिगम्बर परम्परा का प्रमुख आगम ग्रंथ है। प्रथम सदी ईसवी के आस-पास आचार्य धरसेन ने पुष्पदंत और भूतबलि नामक दो तपस्वियों को महिमा नगरी से बुलाया। आन्ध्र प्रदेश के दोनों योग्य मुनिराज गिरनार पर्वत पर पहुँचे । बाद में उन्होंने षट् खंडागम सूत्रों की रचना की। सन् ८१६ ई० में आचार्य वीरसेन ने इसकी 'धवला' नाम से विशाल टीका लिखी। षट् खंडागम की भाषा शौरसेनी तथा प्राकृत है। हमने प्रत्येक कोश कार्य में षट्खंडागम को ग्रहण किया है।
योग, लेश्या, भाव, अध्यवसाय तथा परिणाम आदि जैन आगमों के परिभाषिक शब्द हैं। जीव का स्वरूप पंच भावात्मक है। जीव की अच्छी या बुरी कोई भी प्रवृत्ति हो, उसे पाँच भावों में से किसी न किसी साथ संबद्ध होना ही पड़ेगा। योग और लेश्या जीव की प्रवृत्तियाँ है। सिद्ध अवस्था में योग और लेश्या नहीं है परन्तु भाव है। तेरहवें गुण स्थान तक योग और लेश्या दोनों है परन्तु चौदहवें गुणस्थान में योग और लेश्या दोनों का अभाव है परन्तु भाव सब गुणस्थान में है ।
दव्य लेश्या अष्टस्पी है परन्तु द्रव्य योग मैं द्रव्य मनोयोग और द्रव्य वचन योग चस्पी है ( शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष ) तथा द्रव्य काययोग अष्ट स्पी है। ज्ञान का सागर अथाह है। लेश्याएं छह है-कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल । सभी द्रव्य लेश्याएं अष्टस्पों -आठ स्पर्श वाली है। द्रव्य योग अजीव है परन्त पुण्य, पाप और बंध नहीं है।
पाँच आस्रव द्वार है--मिथ्यात्व, अवत, प्रमाद और कषाय-इन चार आश्रवों में योग का समावेश नहीं होता। योग आस्रव के दो प्रकार है-शुभ योग और अशुभ योग आस्रव । झोणी चर्चा ढाल १ में कहा है
'मन वचन काया रा जोग त्रिहुँ,
सलेसी कह्या जिन राय ॥ ७ ॥
अर्थात भगवान महावीर ने मन, वचन तथा काया-इन तीन योगों को सलेशी कहा है। उत्तराध्ययन में तीन योगों की अगुप्ति को कृष्ण लेश्या का लक्षण कहा है। जो योग सहित होता है यह लेश्या सहित होगा ही। जहाँ लेश्या है वहाँ योग है। योग और लेश्या में अन्तर अवश्य है। योग के दो रूप बनते है-द्रव्ययोग और भावयोग। द्रव्ययोग पौद्गलिक परिणति है और भावयोग आत्मिक परिणति है। अन्तराल गति में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org