Book Title: Vividh Tirth Kalpa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Gyanpith
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विविधतीर्थकल्पे
४. उजयन्तमहातीर्थकल्पः। अस्थि सुरट्टाविसए उर्जितो नाम पचओ रम्मो । तम्सिहरे' आरुहिउं भत्तीए नमह नेमिजिणं ॥१॥ अंबाइअंच देविं न्हवणचणगंधधूवदीवेहिं । पूइअ कयप्पणामा ता जोअह जेण अस्थत्थी ॥२॥ गिरिसिहरकुहरकंदर निज्झरणकवाडविअडकूवेहिं । जोएह खत्तवायं जह भणियं पुत्वसूरीहिं ।। ३ ।। 5 कंदप्पदप्पकप्पण"कुगइविवणनेमिनाहस्स । निव्वाणसिलानामेण अस्थि भुवणंमि विक्खाया ॥ ४ ॥ तस्स य उत्तरपासे दसधणुहेहिं अहोमुहं विवरं । दारंमि तस्स लिङ्गं अवयाणे धणुह चत्तारि ॥ ५॥ तस्स पसुमुत्तगंधो अस्थि रसो पलसएण सयतंबं । विधेति कुणइ तारं ससिकुंदसमुज्जलं सहसा ॥ ६ !! पुबदिसाए धणुहंतरेसु तस्सेव अस्थि जा गवई । पाहाणमया दाहिणदिसागए बारसधणूहिं ।। ७ ॥ दिस्सइ अ तत्थ पयडो हिंगुलवण्णो अ दिव्वपवररसो ! विधेइ सबलोहे फरिसेणं अग्गिसंगेणं ॥ ८ ॥ 10 उचिंते अस्थि नई विहलानामेण पबई पडिमा । दावेइ अंगुलीए फरिसरसो पञ्चईदारं ॥९॥
सकावयार-उजिंतगिरिवरे तस्स उत्तरे पासे । सोवाणपंतिआए पारेवयवणिया पुढवी ॥ १० ॥ पंचगवेण बद्धा पिंडी धमिआ करेइ वरतारं । फेडइ दरिद्दवाहिं उत्तारइ दुक्खकतारं ॥ ११ ॥ सिहरे विसालसिंगे दीसंते पायकुट्टिमा जत्थ । तस्सासन्ने सिहरे कव्वडहढ पामहो तारं ॥ १२ ॥
उजिंतरेवयवणे तत्थ य सुद्दारवानरो अस्थि । सो वामकण्णछित्तो उग्घाडइ विवरवरदारं ॥ १३ ॥ 15 हत्थसएण पविठ्ठो दिक्खइ सोवण्णवण्णिआ रुक्खा । नीलरसेण सवंता सहस्सवेही रसो नृणं ॥ १४ ॥
तं गहिऊण निअत्तो हणुवंतं छिवइ वामपाएण । सो ढकई वरदारं जेण न जाणइ जणो कोवि ॥ १५ ॥ उर्जितसिहरउवार कोहंडिहरं खु नाम विक्खायं । अवरेण तस्स य सिला तदुभयपासेसु ऊसंतु ॥ १६ ॥ तं अयसितिल्लमीसं थंभइ पडिवायवंगिअं वंगं । दोगच्चवाहिहरणं परितुट्ठा अंबिआ जस्स ॥ १७ ।। वेगवई नाम नई मणसिलवण्णा य तत्थ पाहाणा 1 तो पिंडिधमिअसंते समसुद्धे होइ वरतारं ॥ १८॥
जेंते नाणसिला तस्स अहो कणयवण्णिआ पुढवी ! बोकडयमुत्त-पिंडी-खइरंगारे भवे हेमं ।।१९।। नाणसिलाकयपुढवी पिंडीवद्धा य पंचगवण । हृढपाए वसइ रसो सहस्सवेही हवइ हेमं ॥ २०॥ गिरिवरमासन्नठि आणीअंतिलविसारणं नाम । सिलबद्धगाढपांडे वेलक्खा तत्थ दम्माणं ॥ २१ ॥ सेणा नामेण नई सुवण्णतित्थंमि लड्डुअपहाणा । पडिवाएण य सुवं करति हेमं न संदेहो ॥ २२ ॥ बिल्लक्खयंमि नयरे मउहहरं अस्थि सेलगं दिवं । तस्स य म_मि ठिओ गणवइरसकुंडओँ उवार ॥२३॥. 25 उववासी कयपूओं गणवाओं चल्लिऊण पवररसो । षामाषेवी(?) अस्थि अ थंभइ वंगं न संदेहो ॥ २४ ॥
सहसासवं ति तित्थं करंजरुक्खेण मणहरं सम्मं । तत्थ य तुरयायारा पाहाणा तेसि दो भाया ॥२५॥ इक्को पारयमाओं पिट्ठो मुत्तेण अंधभूसाए । धमिओं करेइ तारं उत्तारइ दुक्खकंतारं ॥ २६ ॥ अवलोअणसिहरसिलाअवरेणं तत्थ वररसो सवइ । सुअपक्खसरिसवण्णो करेइ सुवं वरं हेमं ॥ २७ ॥ गिरिपज्जुन्नवयारे अंधिअआसमपयं च नामेण" । तत्थ वि पीआ पुहवी हिमवाए होइ वरहेमं ॥ २८ ॥ 30 नाणसिला उर्जिते तम्स य मूलंमि महिआ पीआ ! साहामिअलेवेणं छायासुकं कुणइ हेमं ॥ २९ ॥
उचिंतपढमसिहरे आरुहिरं दाहिणेन अवयरिउं । तिण्णि धणूसयमित्ते पूइकरं जं बिलं नाम ॥ ३०॥ उम्घाडिउं बिलं दिक्खिऊण निउणेन तत्थ गंतवं । दंडंतराणि बारस दिवरसो जंबुफलसरिसो ।। ३१ ॥ जउघोलिअंमि भंडे सहस्सभाएण विंधए तारे । हेमं करइ अवर्स हद॑तं सुंदरं सहसा ॥ ३२ ॥
1 B तस्सिहार। 2 A कुंडू । 3 AC कापरण। 4C धम्मिआ। 50 रेखा। 6C वसंता। 70 तल। 8B करिति। 90°हरमि। 10Cनामेण ।
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