Book Title: Vividh Tirth Kalpa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Gyanpith
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विविधतीर्थकल्पे
लोहमई कडाही तिस्सा विचासो सुगंधितिल्लघयपागउचिआए कलिमलस्स पिसियाइणो पागो हविस्सइ । सजाइवग्गपरिहारेण अनालबद्धेसु परजणेसु अस्थदाणं भविस्सइ ति भावो ॥ ४ ॥
सप्पसरिसेसु निद्दएस धम्मवज्झेसु दाणाइसक्कारो, गरुडप्पाएसु पुज्जेसु धम्मचारिसु अपूया य भविस्सइ ।। ५ ॥
हत्थस्स अंगुलिदुगेण घट्टणं ठवणं भविस्सइ । हत्थ तुल्लस्स पिउणो अंगुलिदुगतुल्लेहिं बहुपुत्तेहिं जयघर करणाओ 5 घट्टणं नाम लोओ भविस्सइ ॥ ६॥
गयवोढवं सगडं गद्दभवोढवं भविस्सइ । गयत्थाणीएसु उच्चाकुलेसु मज्जायसगडवाहणोचिएसु कलहों नायलो वा भविस्सइ । इयरेसु नीयकुलेसु गद्दभत्थाणीएसु मेरा नीई भविस्सइ ।। ७ ।। ___ वालबद्धा सिला धरिस्सइ ठाइस्सइ, अणुंमि सुहुमयरे बालप्पाए सुद्धधम्मे सत्थाणुसारिणि', सिलातुल्लाए पुढवीए
तन्निवासिलोअस्स ठिई निवर्ण भविस्सइ ॥ ८॥ 10 जहा वालुआए वको तया गहिउँ न तीरइ, एवं आरंभाओ वि वाणिज्ज-किसि-सेवाई आओ विसिटुं पयासाणुरूत्रं फलं न पाविस्सइ ॥ ९॥
सेसगाहादुगत्थो कहाणय'गम्मो । तं चेम-किल पंच पंडवा दुजोहण-दूसासणाइभाउयसए कपण-गां. गेय-दोणायरिएसु अ संगामसीसे निहए, सुचिरं रजं परिवालिअ, कलिजुगपवेसकाले महापहं पट्टिआ कत्थ वि वणुद्देसे पत्ता । तओ रत्तीए जुहिट्ठिलेण भीमाइणो पइपहरं पाहरीअत्ते निरूविआ। तत्तो सुत्तेसु धम्मपुत्ताइसु 15 पुरिसरूवं काउं कली भीममुवट्टिओ; अहिक्खित्तो य तेण भीमो-रे भाउअ-गुरु-पिआमहाइणो मारित्ता संपइ धम्मत्थं
पट्टिओ तुम, ता केरिसो तुह धम्मो ? । तओ भीमो कुद्धो तेण सह जुझिउमारद्धो । जहा जहा भीमो जुज्झइ तहा तहा कली वड्डइ । तओ निजिओ कलिणा भीमो । एवं बीयजामे अज्जुणो, तइअ-चउत्थजामेसु नकुलसहदेवा तेण अहिक्खित्ता, रुद्वा निजिया य । तओ सावसेसाए निसाए उट्टिए जुहिडिले जुज्झिउं दुको कली। तओ
खंतीए चेव निजिओ कली रणा संको'ने सरावमझे ठविओ । पभाए य भीमाइणं दंसिओ-एस जो जेण तुम्हे 20 निजिआ । एवमाईणं दिटुंताणं अद्रुत्तरसएण महाभारहे वासेसिणा कलिट्ठिई दसिय ति । अलं पसंगेण ।
६४. तओ गोअमसामी जाणगपुच्छं पुच्छेइ-भयवं ! तुम्ह निव्वाणाणंतरं किं किं भविस्सइ ? । पहुणा भणियं-गोयम ! मम मुक्खगयस्स तिहिं यासेहिं अद्धनवमेहिं अ मासेहिं पंचमअरओ दूसमा लग्गिस्सह । मह मुक्खगमणाओ वासाणं चउसठ्ठीए अपच्छिमकेवली जंबूसामी सिद्धं गमिही । तेण समं मणपज्जवनाणं, परमोही, पुलायलद्धी, आहारगसरीरं, खेवगसेढी, उवसामगसेढी, जिणकॅप्पो, परिहारविसुद्धि-सुहुमसंपराय-अहसायचारित्ताणि, 25 केवलनाणं, सिद्धिंगैमणं च त्ति दुवालसठाणाई भारहेवासे "वुच्छिजिहिंति ।। अजसुहम्मप्पमुहा होहिंति जुगप्पहाण आयरिया । दुप्पसहो जा सूरी चउरहिआ" दोण्णि अ सहस्सा ॥१॥
सत्चरिसमहिए वाससए गए थूलभदंमि सग्गट्टिए चरमाणि चत्तारि पुवाण, समचउरंसं संठाणं, वरिसहनारायं संघयणं, महापाणज्झाणं च "वुच्छिजिहिइ । वासपंचसएहिं अज्जवयरे दसमं पुवं, संघयणचउक्कं च
अवगच्छिही। 80 महमुक्खगमणाओ पालय-नंद चंदगुत्ताइराईसु वोलीणेसु चउसयसत्तरेहिं विक्कमाइचो राया होही ।
तत्थ सट्टी वरिसाणं पालगन्स रज्जं; पणपण्णं सयं नंदाणं; अट्ठोत्तरं सयं मोरियवंसाणं; तीसं पूसमित्तस्स; सट्ठी
1E नास्त्येतत्पदम् । 2C जयगघर। 8 P काहलो। 4 A BE°वुढा । 5C सारिण। 6P B D तिनि । 7 BCD कहणाय। 8 B°भावु, CE °भाउ°19 BCE जुहिट्ठलेण। 10 BPa नास्ति पदमिदम् ; E हृणिः । 11 P संकोदों। 12 Pa नेअं; P नास्ति । 18 B सो; P भो; Pa सोम । 14 B उच्छिजि। 15E चउरसहिआ। 16 Bउच्छि।
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