Book Title: Vividh Tirth Kalpa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Gyanpith
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विविधतीर्थकल्पे
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५६. पञ्चकल्याणकस्तवनम् । नमि वि जिण ताण कित्तेमि कल्लाणए, पंच चुइ जंमु वउ नाण निवाणए । नाणु कत्तिअकसिणपंचमिहिं संभवे, बारिसिहिं नेमि चुइ पउम जंमो भवे ॥ १ ॥ तेरसिहिं पउभवउ वीर सिबु पनरसी, मागसिअ तीइ सुविहिस्स अर बारसी । मम्गसिरकसिणपंचमि सुविहि जमए, छट्टि सुविहिस्स वीरस्स दसमी वए ॥२॥ मुक्खु इक्कारसिहि एउ पउमप्पहे, सुद्धदसमी अर मुक्खु जमणमहे । पंच इक्कारसिहिं अरवयं निम्मलं, जंमु वउ नाणु मल्लिस्स नमि केवलं ॥ ३ ॥ चउदसिहिं जंमु पुंनिम वयं संभवे, बहुलपोसे दसमि पास जंमूसरे । गहिअ इक्कारसिहिं पासदिक्खागमो, बारसिहिं जंमु ससि तेरसिहिं संजमो ॥ ४ ॥ नाणु उप्पन्नु चउदसिहिं सीअलजिगे, विमल सिम छवि संतिस्स नवमीदिणे । गहिअ इकारसिहिं चउदसिहिं अभिनंदणे, पुंनिमिहि नाणु धमे जणाणंदणे ॥ ५॥ माहकसिणाइ छट्ठीइ पउमो चुउ, सीअलो बारसिहिं जंम-दिक्खाजुओ। रिसहजिणु तेरसिहि पत्तु निव्वुइपए, नाणु सेअंसजिण मावसा गिज्जए ॥६॥ सुद्ध बीआइ पुण दुन्नि कल्लाणए, जम्मु अभिनंदणे नाणु वसुपुज्जए । धम्म-विमलाइ तइआइ जाया जिणे, विमल वर चउत्थि अजिअट्ठमी जमणे ॥ ७ ॥ अजिअ उ नवमि बारसिहिं अभिनंदणे, तेरसिहिं धम्मदिक्खा पसिद्धा जिणे । फग्गुणे कसिणछट्ठीइ नाणुज्जलं, मुक्खु सत्तमि सुपासस्स ससि केवलं ॥ ८ ॥ सुविहि चुइ नवमि केवलमुसभिगारसी, जंमु सेअंस केवल सुक्य बारसी । गहिउ सेअंसि तेरसिहि चारित्तयं, जंमु चउदसिहिं वसुपुज्जमावसि वयं ॥ ९ ॥ सुद्धबीआइ अर चविउ जिणपुंगवो, चउथि मल्ली चविउ अट्टमी संभवो । बारसिहि सुमइ बउ मल्लिजिण निवुई, चउथि चित्ताइ पासस्स नाणं चुई ॥१०॥ पंचमिहिं चवणु चंदप्पहे जिणवरे, अट्टमिहिं जंमु दिक्खा य रिसहेसरे। सुद्धतइआइ कुंथुस्स नाणूसवो, सिद्ध पंचमिहिं गंतोऽजिउ संभवो ॥ ११ ॥ सुमइ मुक्खो नवमि नाणुमेगारसी, वीरनाहस्स जंमूसवो तेरसी । पुंनिमाए तु पउमाभ केवलगुणो, बहुलवइसाहपडिवइ सिवं कुंथुणो ॥ १२ ॥ सीअलो नाहु बीआइ परिनिब्बुउ, कुंथु वउ पंचमिहिं छट्टि सीअल चुउ । दसमि नमि मुक्खु तेरसिहिं गंतब्भवो, चउदसिहि ऽयंतजिण केवलं तह तवो ॥ १३ ॥ जाउ चाउसिहिं कंथु निम्मलमणो, चविउ सद्धे चउथीइ अभिणंदणो। चवण सत्तमिहिं धम्ममि तित्थेसरे, सिद्ध अभिनंदणो अद्रमीवासरे ॥ १४ ॥ अट्रमिहिं जमु नवमी वयं सुमहणो. केवलं पत्त दसमीड वीरो जियो । विमलजिण बारसिहिं अजिउ तेरसि चुड, जिट्टयहुलाइ सेअंसु छहिहिं चुउ ॥ १५ ॥ अट्ठमी जंमु नवमी सिवं सुबए, जंमु सिवु तेरसिहिं संति चउदसि वए। सुद्धपंचमिहिं धम्मस्स निवागयं, नवमि वसुपुज्जजिण चवणकल्लाणयं ॥ १६ ॥ जंमु बारसि सुपासस्स तेरसि वयं, बहुलआसाढचउथी उसम चवणयं । विमल सिब सत्तमिहिं दिक्ख नवमिहिं नमी, वीर सिअछट्टि बुइ नेमि सिवु अट्ठमी ॥ १७ ॥
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