Book Title: Vividh Tirth Kalpa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Gyanpith
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विविधतीर्थकल्पे
७. अहिच्छत्रानगरीकल्पः। तिहुअणभाणु ति जए पयर्ड नमिऊण पासजिणचंदं । अहिछत्ताए कप्पं जहासुअं किंपि जंपेमि ॥१॥
इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मज्झिमखंडे कुरुजंगलजणवए संखावई नाम नयरी रिद्धिसमिद्धा हुत्था । तत्थ भयवं पाससामी छउमत्थविहारेणं विहरंतो काउस्सग्गे ठिओ । पुबनिबद्धवरेण कमठासुरेण अविच्छि5 नधारापवाएहिं वरिसंतो अंबुहरो विउविओ। तेण सयले महिमंडले एगवण्णवीभूए आकंठमगंगं भगवंतं ओहिणा आभोएऊण पंचग्गिसाह्णुज्जयकमढमुणिआणाविअकट्ठखोडीअंतरडझंतसप्पभवउवयारं सुमरतेण धरणिंदेण नागराएण अम्गमहिसीहिं सह आंगतूण मणिरयणचिंचइअं सहस्ससंखफणामंडलछत्तं सामिणो उवरिं करेऊण हिट्टे कुंडलीकयभोगेण संगिव्हिअ सो उपसग्गो निवारिओ। तओ परं तीसे नयरीए अहिच्छत्त ति नामं संजायं । तत्थ पायारकारएहिं
जहा जहा पुरओ ठिओ उरगरूवी धरणिंदो कुडिलगईए सप्पइ तहा तहा इट्टनिवेसो कओ । अन्ज वि तहेव पायार10 रयणा दीसइ । सिरिपाससामिणो चेइअं संघेण कारिअं। चेइआओ पुबदिसि अइमहुरपसन्नोदगाणि कमढजलहरुझिअजलपुन्नाणि सत्त कुंडाणि चिट्ठति । तज्जलेसु विहि अण्हाणाओ निंदूओ थिरवच्छाओ वंति । तेसिं कुंडाणं महिआए धाउवाइआ धाउसिद्धिं भणति । पाहाणलट्ठिमुदिअमुहा सिद्धरसकूविआ य इत्थ दीसइ । तत्थ मिच्छरायस्स अणेगे अग्गिदाणाईउम्घाडगोवकमा निष्फलीहूआ । तीसे पुरीए अंतो यहिं च पत्तेयं कूवाणं दीहिआणं च सवायं लक्खं अच्छई। महुरोदगाणं जत्तागयजणाणं पाससामिचेइए ण्हवणं कुणताणं अज वि कमढो खरपवणदुद्दि15 गवुट्टिगजिअविजुमाइ दरिसेइ । मूलचेइआओ नाइदूरे सिद्धवित्तंमि पाससामिणो धरणिंद-पउमाचईसेविअस्स
चेइअं । पायारसमीवे सिरिनेमिमुत्तिसहिआ सिद्ध-बुद्धकलिआ अंबलंबिहत्था सिंहवाहणा अंबादेवी चिट्ठइ । ससिकरनिम्मलसलिलपडिपुन्ना उत्तराभिहाणा वावी । तत्थ मज्जणे कए तम्मट्टिआलेवे अ कुट्टीणं कुट्ठरोगोवसमो हवइ । धनंतरिकूवस्स य पिंजरवण्णाए मट्टिआए गुरुवएसा कंचणं उप्पज्जइ । बंभकुंडतडपरूढाए मंडुक्कवंभीए दलचुण्णेण
एगवण्णगोखीरेण सम् पीएण पण्णामेहासंपण्णो नीरोगो किंनरसरो अ होइ । तत्थ य पाएणं उववणेस सबमहीरुहाणं 20 चंदया उबलभंति । ताणि ताणि अ कजाणि साहिति । तहा जयंती-नागमणी-सहदेवी-अपराजि
आ-लक्खणा-तिवण्णी-नउली-सउली-सप्पक्खी-सुवण्णसिला-मोहणी-सामली-रविभत्तानिव्विसी-मोरसिहा-सहा-विसल्लापभिईओ महोसहीओ इत्थ वटुंति । लोइआणि अ अणेगाणि हरि-हरहिरण्णगन्भ-चंडिआभवण-बंभकुंडाईणि तित्थाणि। तहा एसा नयरी महातवस्सिस्स सुगिहीयनामधेअम्स कण्हरिसिणो जम्मभूमि त्ति । तप्पयपंकयपरागकणनिवाएण पवित्तीकया एयवत्थवस्स पाससामिस्स संभरणेणं आहि-वाहि25 सप्प-विस-हरि-करि-रण-चोर-जल-जलण-राय-दुट्ट गह-मारि-भूअ-पेअ-साइणिपमुहखुद्दोवद्दवा न पहवंति, भविआणं ति । _ 'विसेसओ सयलातिसयनिहाणं एसा पुरी।। इअ एस अहिच्छत्ताकप्पो उववण्णिओ समासेणं । सिरिजिणपहसूरीहिं पउमावइ-धरण-कमढपिओ ॥१॥
॥ अहिच्छत्राकल्पः समाप्तः ॥
॥ ग्रंथाl० ३६ ॥
1 P धारेऊण। 2P विना सर्वत्र ‘पायारएहिं'। 3 C भवंति । 4 A थाउवाई । 5 Pa विवइ । 6 Pa साहति । 7 AC सप्परक्खी। 8 P विना नास्त्यन्यत्रेदं पदम्।।P आदर्श एवेदं वाक्यं दृश्यते।
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