Book Title: Vividh Tirth Kalpa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Gyanpith
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श्रीपार्श्वनाथकल्पः । मुक्खत्तं कुकलतं कुजाइजम्मो कुरूव-दीणतं । अन्नभवे पुरिसाणं न हुंति पहुपडिमपणयाणं ॥ ६३ ॥ अडसहितित्थजत्ताकए भमइ कह वि मोहिओं लोऔं । तेहिं तोऽयंतगुणं फलमपिते जिणे पासे ॥ ६४ ॥ एगेण वि कुसुमेणं जो पडिमं महइ तिव्वभावो सो । भूवालिमउलिमउलिअचरणो चक्काहिवो होइ । ६५ ।। जे अट्ठविहं पूअं कुणंति पडिमाइ परमभत्तीए । तेसिं देविदाईपयाई करपंकयस्थाई* ॥ ६६ ॥ जो वरकिरीडकुंडलकेयूराईणि कुणइ देवस्स । तिहुअणमउडो होऊण सो लहुं लहइ सिवमुक्खं ।। ६७ ॥ तिहुअणचूडारयणं जणनयणामयसलागिगा एसा । जेहिं न दिट्ठा पडिमा निरत्ययं ताण मणुअत्तं ॥ ६८॥ सिरिसंघदास मुणिणा लहुकम्पो निम्मिओ अ पडिमाए । गुरुकप्पाओ अ मया संबंधलवेसमुद्धरिओ॥६९॥ जो पढइ सुणइ चिंतइ एयं कप्पं स कप्पवासीसु । नाहो होऊण भवे सत्तमए पावए सिद्धिं ॥ ७० ॥ गिहचेइमि जो पुण पुत्थयलिहि अंपि कप्पमच्चेइ । सो नारयतिरिएसे निअमा नो जाइ चिरबोही ।। ७१॥ हरिजलहिजलणगयगयचोरोरगगहनिवारियारिपेयाणं । वेयालसाइणीणं भयाई नासंति दिणि भणणे ॥७२॥ 10 भधाण पुन्नसोहा पाणीआइन्नहिअयठाण पि । कप्पो कप्पतरू इव विलसंतो बंछि देउ* ॥७३॥ जावय मेरुपईवो महिमल्लिअओं समुद्दजलतिल्लो । उज्जोअंतो चिट्ठद नरखित्तं ता जयउँ' कप्पो ॥ ७४ ।।
॥ इति श्रीपार्श्वनाथस्य कल्पसंक्षेपः ॥ ५॥ दढवाहिविहुरिअंगा अणसणगहणत्थमाहविअसंघा । नवसुत्तकुक्कुडि विमोणाय भणिआ निसि सुरीए ॥ १॥ दीविअहत्थअसत्ती नवंगविवरणकहाचमुक्करिआ । थंभणयपासवंदणउवइटारोम्गविहिणो अ ॥ २ ॥ 15 संभाणयाउ चलिआ धवलक्क पुरा परं" चरणचारी । थंभणपुरंमि पत्ता सेहीतडजरपलासवणे ॥ ३ ॥ गोपयझरणुवलक्खिअ भुवि 'जयतिहुअण' थवद्धपञ्चक्खे । पासे पूरिअथवणा गोविअसकलंतवित्तदुगा ॥ ४ ॥ संघकराविअभवणे गयरोगा ठविअ पास पहुपडिमा । सिरिअभयदेवसूरी विजयंतु नवंगवित्तिकरा ॥ ५ ॥
जन्मानेऽपि" चतुःसहस्रशरदो देवालये योऽचिंतः
खामी वासववासुदेववरुणैः खर्वाचिमध्ये ततः । कान्त्यामिभ्यधनेश्वरेण महता नागार्जुनेनाञ्चितः
पायात् स्तम्भनके पुरे स भवतः श्रीपार्श्वनाथो जिनः ॥ ६ ॥
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॥ इति श्रीस्तम्भनककल्पः ॥ मं० १०० (प्रत्यन्तरे १११)
* एतत्तारकाविता गाथाः P आदर्श नोपलभ्यन्ते । 1 Pb °कयाई। 20 Pb केऊरा। 30 सिलागा। 4 Pb संघदाण। 5P थिरवेहो। 6 P दिश। 7 Pb जयइ। 1P इति श्रीपार्थकल्पः संक्षेपतः। षट्पद्यारिमका एषा स्तुतिनोपलभ्यते A आदर्श । 8Pa कुकडि 1 9AP चलिआउ। 10 AP पुरं। 11A B Pa-b यन्मार्गेऽपि ।
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