Book Title: Vividh Tirth Kalpa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ १२ विविधतीर्थकल्पे जाए 'जायवजाईपलए देवाउ दारवइदाहे । सामिपहावा देवालयंमि न हु पावगो लम्गो ॥ ३१ ॥ सद्धिं 'पुरीइ तइया जलनिहिणा रुइरमंदिरसमेओ । लोललहरीकरेहिं नाहो नीरन्तरे नीओ ॥ ३२॥ तक्खयनागिंदेणं तइया रमणत्थमुरग रमणीहिं । तत्थागएण दिट्टा पहुपडिमा पावनिद्दलणी ॥ ३३ ॥ पमुइअमणेण तत्तो नायवहूविहिअनट्टकलहट्टं । महया महेण महिआ जावऽसिई वाससहसाई ॥ ३४ ॥ 5 वरुणो वरहरिअवई तयवसरे सायरं पलोअंतो । तक्खयपूइज्जतं पासइ तिहुअणपहुं पासं ॥ ३५ ॥ एसो सो गोसामी जो सुरनाहेण पूइओ पुदि । इम्हि मज्झवि जुज्जइ सहायणं सामिचलणाणं ॥ ३६ ॥ चिंतिअमत्थमहीणं पत्थिा सेवइ जिणेसमणवरयं । जा चउवच्छरसहसा ठिआ य अह तेण समएणं ॥ ३७ ॥ सिरिवद्धमाणजलए तिलए लोअस्स भरह खितमि । अविरलगोपूरेणं सिंचते भवसम्साई ॥ ३८ ॥ कंतिकलाकलुसीकयसुरपुरपउमाइ कतिनयरीए । बसइ सुहसत्थवाहो धणेसरो सत्थबाहुत्ति ॥ ३९ ॥ 10 सो अन्नया महिन्मो विणिग्गओ जाणवतजत्ताए । संजत्तिअवयजुत्तो सिंहलदीवंमि संपत्तो ॥ ४० ॥ तत्य विद्वप्पिअ पणगणमागच्छंतस्स तस्स वेगेण । पवहणथंभो सहसा जाओ जलरासिमझंमि ॥ ४१ ॥ विमणमणो जा चिंतइ पयडीहोऊण सासणसुरी ता । पदमावई पयंपइ-मा बीहसु वच्छ ! सुण वयणं ॥ ४२ ॥ वरुणविणिम्मिअमहिमो महिमोहमरट्टमदगो भद्द ! । इह नीरतले चिट्टइ पासजिणो नयसु सं ठाणं ॥ ४३ ॥ देवि ! कहं मह सत्ती जिणेसगहणे समुद्दजलमूला । एवं धणेसकहिए तो भासइ सासणादेवी ॥ ४४ ।। 15 पविस मह पुट्टिलग्गो कडसु पहुमाममुत्ततंतूहिं । आरोविअ पोअवरे सावय ! वय निअपुरि सुत्थो ॥ ४५ ॥ काऊण सबमेयं लोगत्तयनायगं गहेऊण । संजायहरिसपगरिसपुलइअगत्तो महासत्तो ॥ ४६॥ खणमित्तेण सठाणं समागओ परिसरे पडकुडीओ । रइआविअ जाव ठिओ एइ जणो सम्मुहो ताव ।। ४७ ।। मंधवगीइवाइअरवेण सूहवयनारिधवलेहिं । बहिरिअकहो नाहं दाणं दितो पवेसेइ ।। ४८ ॥ "रययामलसच्छायं पासायं कारिऊण कंतीए । विणिवेसिअ भुवणगुरुं निचं पूएइ भत्तीए ॥ १९ ॥ 20 कालंतरमावण्णे धणेसरे पउरनायरवरेहिं ! वाससहस्से पहुणो पूइज्जंतस्स वक्ते ॥ ५० ॥ देवाहिदेवमुर्ति परिअररहि तया" य कंतीए । मेलिअ रसस्स थंभणनिमित्तमागासमग्गेण ॥ ५१ ।। कलिअकलाकालत्तयपालित्तयगणहरोवएसाओं । नागजुणजोइंदौ" आणेही अप्पणो ठाणे ॥ ५२ ॥ जोइणि गए कयत्थे नत्थं मुत्तूण नाहमडवीए । रसथंभाओ होही थंभणयं नाम तित्थं ति ॥ ५३ ॥ उभिन्नवंसयालंतरटिओ सुरहिखीरण्हविअंगो । आकंठखिइनिमग्गो जणेण जक्खु ति कयनामो ॥ ५४ ॥ 25 अच्चिस्सइ तयवस्थो जिणनाहो पणसयाई वरिसाणं । तयणु धरणिंदनिम्मिअसन्निज्झो विइअसुअसारो ॥ ५५ ॥ सिरिअभयदेवसूरी दूरीकयदुहिअरोगसंघाओ । पयडं तित्थं काही अहीणमाहप्पदिप्पंतं ।। ५६ ॥ कंतीपुरीइ भयवं पुणो गमिस्सइ तओं अ जलहिंमि । बहुविहनयरेसु अ गडवगडुव महिमाइ दिप्पंतो ॥ ५७ ।। अह को तीआणागयपडिमाठाणाण साहणसमत्थो । जइवि हु सो सहसमुहो" हविज रसणासयसहस्सो ॥ ५८ ।। पावा-चंप-हावय-रेवय-संमेअ-विमलसेलेसु । कासी-नासिग-मिहिला-रायगिहिप्पमुहतित्थेसु ॥५९ 30 जत्ताइ पूअणेणं दागेणं" जं फलं हवइ जीवो । तं पासपडिमदंसणमित्तेणं पावए इत्थ ॥ ६ ॥ मासक्खमणस्स फलं वंदणबुद्धीइ पाससामिस्स । छम्मासिअस्स पावइ नयणपहगयाइ पडिमाए । ६१॥ निरवच्चो बहुतणओ धणहीणो धणयसंनिहो होइ । दोहग्गोवि हु सुहओ पहुदिट्टीए जणो" ट्ठिो ॥ ६२ ।। 1 Pb जायण°1 2 Pa सिद्धिपुरीओ। 3A.BPa नीरतरे। 4 P "मुरगय। 5A B Pa जावसिवाई। 6 P सुरलोगाहिवेण। 7 P सत्यवाहोत्थि। 8 P सूहवइ । 9P रइयाय'। 10 Pu तयाइ। 11 P जोगिंदो। 12 Pa गत्यगस्य । 13 C समुहो। 14 'दाणेणं' नास्ति CL 15 Pजणे जिहो ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160