Book Title: Vividh Tirth Kalpa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Gyanpith

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Page 43
________________ श्रीपार्श्वनाथकल्पः । ६. श्रीपार्श्वनाथकल्पः। सुरअसुरखयरकिन्नरजोईसरविसरमहुअराकलिअं । तिहुअणकमलागेहं नमामि जिणचलणनीररुहं ॥ १ ॥ जं पुबमुणिगणेणं अविअप्पाणपकप्पमझंमि । सुरनरफणिपहुमहि कहि सिरिपासजिणचरिअं ॥ २ ॥ 'संकिण्णसस्थनिक्खित्तचित्तवित्तीण धम्मिअजणाण । तोसकए तं कप्पं भणामि पासस्स लेसेण ॥ ३ ॥ भवभमणभेयणत्थं भविआ भवदुक्खभारमरिअंगा । एयं समासओं पुण पभणिजंतं मए सुणह ॥ ४ ॥ विजया जया य कमठो पउमावइ-पासजक्रव-वहरुट्टा । धरणो विजादेवी सोलसऽहिट्टायगा जम्स ॥५ पडिमुप्पत्तिनियाणं कप्पे कलिअंपि नेह संकलिअं। एयस्स गोरवभया पढिहिइ न हु को इमं पच्छा ॥ ६ ॥ अह जलहिचुलुअमाणं करेइ तारयविमाणसंखं जो । पासजिणयडिममहिमं कहिउं न वि पारए सो वि ॥७॥ एसा पुराणपडिमा अणेगठाणेसु संठवेऊणं । खयरसुरनरवरेहिं महिआ उवसम्गसमणत्थं ।। ८॥ तह वि हु जणमणनिच्चलभावकए पाससामिपडिमाए । इंदाईकयमहिमं कित्तिअमेयाइ ता वुच्छं ॥ ९॥ 10 सुरअसुरवंदिअपए सिरिमुणिसुश्वयदिणेसरे इत्थ । “भारहसरंमि भविअणकमलाई बोहयंतमि ॥१०॥ चंपाइ पुरवरीए एसा सिरिपाससामिणो पडिमा । रयणायरोक्कंठे जोईसरवनिआ आसि ॥ ११ ॥ सकस्स कत्तिअभवे सयसंखाभिग्गहा गया सिद्धिं । एआए झाणाओ वयगणाणतरं तइया ॥ १२ ॥ सोहम्मवासवो तं पडिमामाहप्पमोहिणा मुणिउं । अंचइ तत्थेव ठिअं महाविभूईइ दिवाए ॥ १३ ॥ एवं वच्चइ कालो 'कयवयवासेहिं रामवणवासो । राहवपहावदसणहेउं लोआण हरिवयणा ॥ १४ ॥ 15 रयणजडियखयरसंजुअसुरजुअलेण च दंडगारपणे । सतुरयरहो अ पडिमा दिन्नेसा रामभद्दस्स ॥ १५ ॥ सगमासे नवदिअहे विदेहदुहिओवणीयकुसुमेहिं । भत्तिभरनिन्भरेणं महिआ रहुपुंगवण तया ॥ १६ ॥ रामस्स पबलकम्मयमलंघणिजं च वसणमोइण्णं । नाऊण सुरा भुज्जो" तं पडिमं निति तं ठाणं ॥ १७ ॥ पूअइ पुणो वि सको "पगिट्ठभत्तीइ दिवभोएहिं । एवं जा संपुण्णा एगारसवासलक्खा य ।। १८ ॥ तेणं कालेणं जउवंसे बलएव-कण्ह- जिणनाहा । अवइन्ना संपत्ता जुत्रणमह केसवो रजं ॥ १९ ॥ कण्हेण जरासंधस्स विग्गहे निअदलोवसग्गेलु । पुट्टो नेमी भयवं पचूहविणासणोवायं ॥ २० ॥ तत्तो आइसइ पहू-पुरिसत्तम ! मज्झ सिद्धिगमणाओ । सगसयपष्णासाहिअतेसीसहसेहिं वरिसाणं ॥२१॥ होही पासो अरिहा विविहाहिट्ठायगेहिं नयचलणो । जस्सच्चाण्हवणजलासित्ते लोए समइ असिवं ॥ २२॥ सामी ! संपइ कत्थवि तस्स जिणिंदस्स चिट्ठए पडिमा ? । इअ चकधरेणुत्ते तमिंदमहिअं कहइ नाहो ॥ २३ ॥ इअ जिण जणदणाणं अह सो मुणिउं मणोगयं भावं । मायलिसारहिसहिअं रहमेयं पडिममप्पेइ ॥ २४ ॥ 25 मुइओं मुररिउ पडिमं ण्हवेइ घणसारधणधणरसेहिं । पूइ परिमलबलामलचंदणचारुकुसुमेहिं ॥ २५ ॥ पच्छागयगदिन्नं सिन्नं सिंचेइ सामिसलिलेणं । जंतुवसग्गा विलयं विलयं जह जोगिचित्ताइं ॥ २६ ॥ बहुदुहवणं" निहणं पत्ते "पञ्चद्धचक्कवष्टिमि । जाओ जयजयरायो" जायवनिवनिबिडभडसिन्ने ॥ २७ ॥ तत्थेव विजयठाणे निम्माविअमहिणवं जिणाएसा । संखउरनयरजुत्तं ठविऊणं पासपहुबिवं ॥ २८॥ पडिममिमं संगिहिअ निअनयरमुवागयस्स कण्हस्स । भूवेहिं वासुदेवत्तणाभिसेऊसको विहिओ ॥ २९ ॥ 30 कपहनरिंदेण तओ मणिकंचणरयणरइअपासाए । सत्तयवाससआई संठाविअ पूइआ पडिमा ॥ ३० ॥ 1 Pb मईअं। 2 Pa-b सखित्त: A CP संकित्त। 3 Pa यस्स14 Pa कित्तियमित्ताई। 5 Pa भरह। 6 Pa कयवइ 7 Pa °खबरसंजुयलेण। 8 Pa°दिवसे। 9 Pa विना सर्वत्र 'तहा। 10 Pa पुजो। HA B P) पकिट्ट। 12 A. Pa सुररिउ; C सिरिरिउ । 13 B Pb हावइ। 14 Pa पूइइ; Pb पूई। 15 A वश । 16P पचढ़े। 17 BC'राओ।

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