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तीर्थंकर पार्श्वनाथ अहिक्षेत्र भव्य और सुव्यवस्थित क्षेत्र है, शान्त स्थान होने से वहां पूजा वन्दना में आनन्द भी आता है। परन्तु वहां क्षेत्र पर भी कोई ऐसे प्रमाण नहीं हैं जिनके आधार पर यह सुनिश्चित माना जा सके कि यही स्थान पार्श्वनाथ पर उपसर्ग का स्थान है।
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बिजौलिया के दर्शन का अवसर जब मुझे मिला तो वहां के प्राचीन मंदिर, मूर्तियां, मानस्तम्भ, शिलालेख और शिलाखण्डों को देखकर सहज ही लगा कि यह स्थान पार्श्वनाथ के जीवन से संबंधित होना चाहिए। इस संबंध में जब और जानकारी प्राप्त की तो मेरी धारणा को सप्रमाण संबल मिला।
बिजौलिया राजस्थान के प्रसिद्ध शहर कोटा और भीलवाड़ा के बीच में बसा एक नगर है। दोनों शहरों से उसकी दूरी ८५ किलोमीटर है। नगर से बाहर एक किलोमीटर पर बिजौलिया अतिशय क्षेत्र है। वर्तमान में बिजौलिया नाम से प्रसिद्ध इस नगर के कुछ प्राचीन नामों जैसे विन्ध्यावल्ली, विजयवल्ली, विजहल्या का भी उल्लेख मिलता है। क्षेत्र पर अनेक शिलालेख हैं जो इस स्थान की गौरव गाथा अपने भीतर संजोये हुए हैं।
यहां एक छह मीटर लम्बी और ढाई. मीटर चौड़ी शिला पर पूरा पुराण ही उत्कीर्ण है। “उन्नत शिखर पुराण" नाम के इस शिलालेख में २९४ श्लोक हैं जो ५ अध्यायों में विभक्त हैं। शिलालेख की लम्बाई साढे चार मीटर और चौड़ाई पौने दो मीटर है। मेरे देखने में आने वाला यह सबसे बड़ा शिलालेख है। इसका उत्कीर्णन फाल्गुन बदी १० वि. सं. १२६६ को पूर्ण हुआ था ऐसा उस पर उल्लेख है। इस शिलालेख के निर्माण कर्ता वही लोकार्क नामक श्रेष्ठि हैं जिन्होंने इस क्षेत्र का जीर्णोद्वार कराके मंदिरों का निर्माण कराया है। यहां के प्रमुख प्राचीन मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो लाइन का एक शिलालेख लम्बी पट्टी पर उत्कीर्ण है। मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर भी एक शिलालेख जिस पर संवत १२२६ वैसाख बदी ११ अंकित है। गर्भग्रह से लगभग ३ मीटर दूर फर्श के एक पुराने शिलाखण्ड