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भट्टारक सकलकीर्ति और उनका पार्श्वनाथचरितम्
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के संघर्षमय जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का सफल प्रयास
किया है।
अनन्तानुबन्धी कषाय का परिपाक
जैनदर्शन में प्रतिपादित अनन्तानुबन्धी कषाय किस प्रकार जन्म-जन्मान्तर तक बदला लेने को प्रेरित करती है, यह कमठ के जीव के पूर्वभवों एवं वर्तमान भव के क्रिया-कलापों से स्पष्ट होता है।
कमठ और मरुभूति
भट्टारक सकलकीर्ति द्वारा रचित 'पार्श्वनाथ-चरितम्' भगवान् पार्श्वनाथ के इत:पूर्व नौ भवों एवं वर्तमान तीर्थंकर पर्याय की जीती-जागती कथा है। - यह कथा पोदनपुर के महाराजा अरविन्द के न्यायपूर्ण शासन एवं उनके मन्त्री विश्वभूति नामक ब्राह्मण के उदात्त गुणों से प्रारम्भ होती है। विश्वभूति और उसकी पत्नी अनुन्धरी से दो पुत्र हुये - कमठ और मरुभूति। कमठ विष के समान और मरुभूति अमृतोपम था। एक दिन विश्वभूति अपने मस्तक पर उगे हुये एक सफेद बाल को देखकर संसार से भयभीत हो गये और उन्होंने पुण्य के संयोग से उस सफेद केश के छल से धर्म का श्रेष्ठ अंकुर उत्पन्न हुआ माना, जो कालक्रम से चारित्र को उत्पन्न करने वाला है - . .अथैकदा विलोक्याशु मस्तके पलितं कचम्।
राजमन्त्री ससंवेगं प्राप्येदं चिन्तयेद् हृदि ।। अहो मे पुण्ययोगेन केऽभूद् धर्माकुरो महान् । पलितच्छद्मना केशोऽयं चारित्रविधायकः ।। अपने चारित्र रूप संयम के द्वारा विश्वभूति का जीव कालक्रम से मुक्ति को प्राप्त हुआ।