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तीर्थकर पार्श्वनाथ भक्ति गंगा - के आलोक में भगवान पार्श्वनाथ
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मौन करो भावे ध्यान धरो साँसत सही जु पढो नित वेदं। एतो कियो तो कहा भयौ जु श्री पास बिना जु सबे फल छेदं ।।६२
अर्थात् हे जीव चाहे जाप जपो, चाहे तपस्या करो, चाहे सब भेद-प्रभेद सहित व्रत कर डालो, चाहे नग्न रहकर सूर्य की कड़ी धूप सहन करो अथवा तीर्थों में जाकर नाना कष्ट झेलो। घर में रहो या वन में जाकर ध्यान धारण करो अथवा वेदाध्ययन का कष्ट सहो, किन्तु इतना सब कुछ भी किया तो क्या किया अर्थात् इन सबके करने में कुछ नहीं होता, श्री पार्श्वनाथ की भक्ति के बिना सब निष्फल है। - इस प्रकार तीर्थंकर पार्श्वनाथ भक्ति गंगा' में संकलित सभी पद विचारणीय एवं भ. पार्श्व के विविध पक्षों को दर्शानेवाले भक्तिभावना से आपूरित हैं। इनका अनुसरण करने वाला जीव निश्चित ही भ. पार्श्व प्रभु के चरणों का अनुगमन कर सकेगा ऐसा विश्वास है।
संदर्भ. १. अभिधान राजेन्द्रकोश, पांचवां भाग, पृ. १३६५ २. नारद भक्ति सूत्र., १८ ३. आचार्य हेमचन्द्र : प्राकृत व्याकरण २/१५९, १९०० ४. आचार्य पूज्यपाद : सर्वार्थ सिद्धि, भाष्य - ३३९ ५. . तीर्थंकर पार्श्वनाथ भक्तिगंगा ४६/२९ । सुखदेव: काशी स्तुति । ६. वही, ८९/५६ । किशन सिंह: चतुविशंतिस्तुति । ७. वही, १९/१२ । दौलतराम: दौलतपद संग्रह। ८. वही, २०/१३ । कुमुदचन्द्र। वही ४३/२७ (अजयराज),
वही, ५७/३५ (दौलत राम) ९. वही, ३१/१९, (जगजीवन:पदसंग्रह) १०. वही, ९०/५६ (पारसदास: पारसविलास), वही ९१/५७ (भूधरदास:पार्श्व पुराण)
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