Book Title: Tirthankar Parshwanath
Author(s): Ashokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharti

Previous | Next

Page 409
________________ ३४६ तीर्थंकर पार्श्वनाथ सदी के लगभग की लगती है इसके घुटने तथा फण टूटे हैं परन्तु चौमुखी से ऊपर कमल दल अतिकलापूर्ण ढंग से सुन्दर पूर्वक सजा . हुआ सुरक्षित है। (१८)मानस्तम्भ पर पार्श्वप्रभु - भूरे रंग के मानस्तम्भ पर पार्श्वप्रभु की प्रतिमा के साथ-साथ अन्य तीर्थंकर प्रतिमाएं अंकित हैं, इनमें से चार ऊपर कायोत्सर्ग मुद्रा में तथा चार नीचे पद्मासन मुद्रा में बैठी हैं। दो : खम्भों द्वारा निर्मित लघु मंदिर में प्रभुपार्श्व की प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा में विराजमान है। यह मानस्तंभ इलाहाबाद से लखनऊ म्यूजियम में लाया गया था। इनके सिर पर सप्त फणों की छायात्मक फणावली है . तथा नीचे चौकी पर सर्प की पूंछ सुस्पष्ट दिखाई देती है। . (१९)प्रभुपार्श्व का आवक्ष - श्रावस्ती से लाया यह आवक्ष मात्र भूरे रंग के सफेद पत्थर की कायोत्सर्ग प्रतिमा है। यह सप्त फणों की छत्रछाया में विद्यमान है। लगता है इस प्रतिमा को तोड़ दिया गया होगा इससे आवक्ष मात्र ही अवशिष्ट रहा, इसका पत्थर बहुत घिस गया है। (२०)पंचतीर्थी प्रभुपार्श्व - लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित है इसका आकार ५७ ग ४४ सें.मी. है यह भूरे रंग के रेतीले. पत्थर से निर्मित है। सिंहासन के दायें बायें एक-एक सिंह तथा मध्य में धर्मचक्र अंकित है। प्रतिमा पद्मासन में पूर्णतया अलंकृत आसन ध्यानस्थ मुद्रा में विराजमान है, सिर पर सप्त फणावली छायात्मक दशा में अंकित है। सर्प की कुण्डलियां दोनों ओर सुस्पष्ट दिखती हैं। घुटनों के पास दोनों ओर एक-एक चंवरधारिणी बनी है तथा दोनों तीर्थंकर अंकित हैं। ऊपर विद्याधर युगल है जो बहुत अधिक घिस गए हैं। इस पर कोई लेख नहीं है। अनुमान है यह १०वीं सदी में निर्मित हो श्रावस्ती से लाई गई थी। (२१)वृहत्काय पद्मासनस्थ पार्श्व प्रभु (श्वेताम्बर) - कंकाली ,टीले से प्राप्त यह वृहत्काय प्रतिमा लखनऊ म्यूजियम में है। यह गहरे काले पत्थर की है जो अति रोचक और मनोहर है। आकृति १७० ग १३३ ग ७० से.मी. है। ध्यानस्थ मुद्रा में दोनों ओर सर्पकुण्डली स्पष्ट दिखाई देती

Loading...

Page Navigation
1 ... 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418