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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
श्रीपुर के नाम से विख्यात है। यहां रेल और सड़क द्वारा पहुंचा जा सकता है। इसे मंग नरेश श्रीपुरुष (७७९ ई.) ने बसाया था जो यहां अंतरिक्ष में स्थित प्रभु पार्श्व की अतिशयपूर्ण महिमा देख कर प्रभावित हुए थे, इस प्रतिमा के महात्म्य से प्रभावित आचार्य विद्यानन्द जी ने (७७५-८४० ई.) श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तवन नामक स्तोत्र की रचना की थी। यद्यपि रचना ३० श्लोक मात्र है पर उससे उनके पाण्डित्य एवं अन्य मत मतान्तरों के अगाध ज्ञान का पता चलता है। वे न्यायं । के यहां महावाचस्पति थे, राजा एल ने यहां बहुत से जिन बिम्ब. बनवाए थे। इस प्रतिमा की विशेषता है कि यह अंक्षरिक्ष में विराजमान है जिसके नीचे से घोड़े पर बैठा सवार अथवा सिर पर घड़े धरे पनिहारिने निकल जाती थीं। कालदोष से अब इतना भर रह गया है कि इसके नीचे से धागा, रुमाल या कागज निकल सकता है। मुनि श्री मदन कीर्ति (१२०५ ई.) ने अपनी “. शासन चतुस्त्रिशतिका” में श्रीपुर । की वंदना करते हुए निम्न श्लोक लिखा है : .
पत्रंयत्र विहायसि प्रविपुलेस्थातं क्षणं न क्षम. तत्राऽऽस्ते गुणरत्न रोहण गिरि यो देव देवो महान! चित्रं न ऽऽत्र करोति कस्य मनसो दृष्ट पुरे श्रीपुरे
स श्रीपार्श्व जिनेश्वरो विजयते दिग्वाससां श्री शासनम्। इस श्लोक का पद्यानुवाद आचार्य श्री विद्यासागर जी ने निम्न प्रकार किया है:
पत्रटिके न जहां अधर में गुणरानों का गिरिवर हो, . कितना विस्मय किसे नहीं हो चलो देखलो शिरपुर को देवों के भी देव पार्श्व जिन अंतरिक्ष में शान्त रहे, ..
युगों युगों तक दिगम्बरों का जिन शासन जयवंत रहे। (२८)अहिच्छेत्र प्रभु पार्श्व - अहिक्षेत्र बरेली जिले की आंवला तहसील के.
ग्राम में स्थित है। आजकल इसे रामनगर कहा जाता है। पुराना नाम संख्यावती नगरी था। यहां के मंदिर में हरितपन्ना की प्रभु पार्श्व की