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प्रभु पार्श्व की कतिपय कलापूर्ण ऐतिहासिक प्रतिमायें
३४९ (२५)यक्ष-यक्षी विहीन प्रभु पार्श्व - संवत् ११२० की निर्मित श्री पार्श्व प्रभु
की प्रतिमा श्रावस्ती वहराइच से लाकर लखनऊ म्यूजियम में सुरक्षित रखी गयी है। भूरे रंग के पत्थर की बैठी हुई सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा है। चौकी के दोनों ओर एक एक सिंह बैठा है बीच में धर्म चक्र अंकित है। दायें बायें उपासक और उपासिकाएं निर्मित हैं आसन के ऊपर एक वस्त्र बिछा है जिसका एक कोना सामने लटक रहा है, इसके ऊपर ध्यानस्थ पार्श्व प्रभु विराजमान हैं। संयोग से यह मूर्ति पूर्णतया सर्वांग सुरक्षित है। पार्श्व के वक्षस्थल पर सकरपारे के आकार का श्री वत्स बाहर को उभरा हुआ है तथा कान बहुत लम्बे उकेरे गये हैं, धुंधराले बालों के ऊपर छोटा उष्णीष उकेरा गया है। जिससे आभास होता है कि कलाकार बौद्धत्व का असर छोड़ना चाहता है। पार्श्व प्रभु के अगल बगल में एक एक चंवरधारी अलंकृत हैं इनके ऊपर हवा में उड़ते हुए विद्याधर उकेरे गए हैं। दोनों के बायीं ओर कछ देवियां उकेरी गई हैं जो बांसुरी और वीणा बजा रही हैं। तत्पश्चात् दोनों
ओर एक एक ऐरावत हाथी भी उकेरे गए हैं। बायीं ओर के हाथी पर . बैठा सवार पूर्णतया सुरक्षित बच गया है। दोनों हाथियों और सर्पफण . के बीच एक त्रिछत्र तथा आमलक उकेरे गए हैं। .(२६) पद्मावती के सिर पर प्रभु पार्श्व - कलातीर्थ महोबा से प्राप्त
लखनऊ म्यूजियम में अवस्थित एक अति मनोज्ञ पद्मावती की प्रतिमा
है जिसके चारों ओर कमल पंखुड़ियां उकेरी गई हैं। इसका दाँया ... घुटना कुछ टूटा सा है, मूर्ति के दोनों ओर एक एक उपासक तथा
चंवरं धारिणी अलंकृत हैं, देवी का एक पैर कमल पर रखा है। देवी चतुर्भुजी है इसके ऊपर सप्तफणों का छत्र उकेरा गया है। इनमें से केवल दो फण अवशिष्ट हैं बाकी सब त्रुटित हैं। सर्प फणावली के ऊपर ध्यानस्थ प्रभु पार्श्व सुप्रतिष्ठित हैं। इनके दांये बायें चंबरधारी
तथा मालाधारी विद्याधर उकेरे गए हैं। - (२७)शिरपुर अंतरिक्ष पार्श्वनाथ - यह स्थान महाराष्ट्र के अकोला जिले
में वाशिम ताल्लुका स्थित छोटा सा ग्राम है। अंतरिक्ष पार्श्वनाथ