Book Title: Tirthankar Parshwanath
Author(s): Ashokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharti

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Page 410
________________ प्रभु पार्श्व की कतिपय कलापूर्ण ऐतिहासिक प्रतिमायें ३४७ है। आसन पांच फूलों से सजाया गया है। इसमें से तीन फूल तो सर्प पुच्छ की तरह उकेरे गये हैं बाकी दो फूल दायें बायें आधे-आधे हैं। सिर पर धुंघराले बाल तथा उष्णीष बनी है, गर्दन पर रेखाएं हैं, वक्षस्थल पर गोल चक्र जैसा श्रीवत्स उकेरा गया है, दोनों बगलों से सर्प की कुण्डली निकलती सी दिखाई गई है। प्रतिमा का अंकन अति मनोज्ञ एवं लावण्य पूर्ण है। इस पर अंकित लेख से इसे देव निर्मित कहा जाता है। मूल लेख इस प्रकार है “संवत १०३६ कार्तिक शुक्ल एकादस्मां श्रीश्वेताम्बर मूल संघेत पंचिमतम्पी, कायां श्री देव निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठापिता" ईस्वी सन ९७९ को कार्तिक सुदी एकादशी को श्वेताम्बर मूल संघ ने इस देव निर्मित प्रभु को स्थापित किया था। .यह ध्यातव्य है कि श्वेताम्बर आम्नाय के प्राचीन ग्रथों में कमठ का उपसर्ग धरणेन्द्र, पद्मावती तथा फणावली सहित छत्रादि की कोई चर्चा नहीं है। यह तो बहुत काल बाद मध्य युग में प्रचलित हुई है। सर्प का पार्श्व से कोई संयोग नहीं हैं। (२२)महोबा के पार्श्व प्रभु - यह प्रतिमा लखनऊ संग्रहालय में विराजमान है। यह अति भूरे पत्थर की रोचक और अत्यधिक रम्य जीवन्त प्रतिमा है। इसका आकार ४३ ग २५ से.मी. है - ये सिंहासन पर .ध्यानस्थ है बांई ओर शासन देवी पद्मावती उकेरी गई है जिसपर तीन छत्र फणात्मक हैं और दाईं ओर चंवरधारी धरणेन्द्र खड़े हैं। उन पर भी तीन फणों वाला छत्र बना है, बीच में सप्त फणावली से युक्त पार्श्व प्रभु विराजमान हैं। सप्तफणावली के ऊपर त्रिछत्र उकेरे गये हैं जिसपर देव दुंदुभि वादक अपनी दुंदुभि बजा रहे हैं। मूर्ति के दाएं बाएं और हवा में उड़ते हुए मालाधारी विद्याधर उकेरे गए हैं, चौकी की बायीं तरफ पिच्छी लिए मुनि तथा दायीं ओर उपासक युगल.उत्कीर्णित हैं। यह प्रतिमा ११-१२वीं सदी की चंदेल शासन कालीन लगती है यह महोबा से लखनऊ म्यूजियम लाई गई थी, निश्चित यह अति विशिष्ट प्रतिमा कलाकारी से परिपूर्ण अत्यधिक रोचक और दृष्टव्य है। महोबा

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