Book Title: Tirthankar Parshwanath
Author(s): Ashokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharti

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Page 408
________________ ३४५ प्रभु पार्श्व की कतिपय. कलापूर्ण ऐतिहासिक प्रतिमायें प्रतिमा की चौकी पर मध्य भाग में धर्मचक्र अंकित है। पार्श्व प्रभु सप्तफणों के नीचे ध्यानस्थ मुद्रा में विराजमान है। यह नंदी आनंदी बलदेव से लाई गई थी। यह प्रतिमा गुप्तकाल के पूर्वी मध्यकाल की है। तीसरी प्रतिमा गुप्तों के मध्यकाल की है। इसमें एक मालाधारी विद्याधर सुरक्षित बचा हुआ दिखाई देता है। इस प्रतिमा को कोसी कला (मथुरा) में लाया गया था। इनके अतिरिक्त एक पद्मस्थ पार्श्वप्रभु की प्रतिमा कगरूल (आगरा) से लाकर मथुरा संग्रहालय में सुसंग्रहीत है। (१६) त्रितीर्थी पार्श्वप्रभु (सप्तफणी) - वाराणसी से प्राप्त लखनऊ संग्रहालय में एक अत्यधिक मोहक प्रतिमा सर्पफणी पार्श्व प्रभु की विराजमान है। बीच में एक फण त्रुटित है, यह सुरमाई रंग के पत्थर की त्रितीर्थी है चौकी के अगल बगल में एक-एक सिंह उत्कीर्णित है तथा मध्य में धर्मचक्र अंकित है, बायीं ओर वंदन मुद्रा में एक उपासिका बैठी है तथा दायीं ओर एक सर्पफण वेष्टित दो भुजा पद्मावती भी उत्कीर्णित है। इसके विपरीत दिशा में सर्पमण्डित धरणेन्द्र खड़े हैं। मूल प्रतिमा के दायीं बायीं ओर एक एक तीर्थंकर पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं तथा सजावट के लिए सुन्दर कमल का अंकन है। सर्प को पैरों के पीछे से पृष्ठ भाग से चलकर सिर पर फणावली उत्कीर्णित है। दोनों ओर ... मालाधारी विद्याधर अंकित हैं, फणावली पर त्रिछत्र अंकित हैं, उसके ऊपर देव दुंदुभि वादक बैठा है। ..(१७)मध्ययुगीन सर्वतोभद्र पार्श्व प्रभु - मथुरा संग्रहालय में पद्मासन मुद्रा में सप्तफणी पार्श्व प्रभु की प्रतिमा अंकित है। लखनऊ संग्रहालय में भी ऐसी तीन मूर्तियां हैं जो शौरीपुर वटेश्वर तथा आगरा से लाकर रखी गई है। एक और अति मनोहर भरे पत्थर की पार्श्व प्रभु की प्रतिमा नवीं सदी की एटा जनपद के सरायअथत ग्राम से प्राप्त है। दूसरी प्रभु पार्श्व दुहरे कमल की गद्दी पर कायोत्सर्ग मुद्रा में अंकित है और नीचे चारों ओर चौमुखी के दो दो ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि व राहु आदि अंकित हैं। तीसरी फैजाबाद से आई है। १०वीं

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