Book Title: Tirthankar Parshwanath
Author(s): Ashokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharti

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Page 337
________________ २७४ तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुआ कि धीरे-धीरे रूढ़ और श्रद्धालु जैन वर्ग का ध्यान भी ऐतिहासिक दृष्टि से श्रृत अध्ययन करने की ओर जाने लगा; यह संतोष की बात है। - शैलकला वस्तुएँ तथा चित्रकारी मानवता के इतिहास के महत्वपूर्ण पृष्ठ हैं वे उस कहानी के बीच के स्थल हैं जिसकी शुरूआत मानव द्वारा लगभग २५ लाख वर्ष पूर्व पहली बार सांस्कृतिक घटना के रूप में हुई थी जिनके अवशेष अभी भी उपलब्ध होते हैं। मानव ने गुफाओं में चित्रकारी करके प्रारंम्भिक कला रचनाएं की हैं। शैलकला के प्राचीनतम प्रमाण यूरोप और अफ्रीका में मिलते हैं जिनकी गणना ४० हजार वर्ष पूर्व निर्धारित की जाती है। शैलकला के इतने पुराने प्रमाण दुनिया के सभी हिस्सों में नहीं मिलते। लगभग २०० शैल कला स्थल देश में ज्ञात हैं जिनमें २००० शैलाश्रय और हजारों की मात्रा में चित्र उपलब्ध हैं। अपने देश में सर्वाधिक स्थल मध्य भारत क्षेत्र में हैं। भीमवेटिका शैलंकला स्थल के रूप में पर्यटकों और सामान्य जनसंख्या के बीच अत्यधिक जानी पहचानी जगह है। चूंकि शैल चित्र कला विषय पर न्यूनतम मात्रा में शोध हुए हैं अत: इस विषय की जानकारी भी बिरले लोगों को है। ये शैल चित्र बीहड़ जंगलों एकांत दुर्गम स्थानों पर ही मिलते हैं इसलिए सामान्य मनुष्य की पहुंच और जानकारी से दूर हैं। ____मेरा एक शोध आलेख शोधादर्श में १९८४ के अंक में 'हथफोरकी रंगशाला' नाम से प्रकाशित हुआ था जिसमें भ. ऋषभदेव के शैलकला चित्रों की जानकारी दी थी। अभी अनेकांत के अप्रैल/जून ९७ अंक में जोगीमारा/सीतावेंगा के भित्तिचित्र नाम से आलेख में भी इसी विषय पर शोधपूर्ण सामग्री देकर जैन विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया था। 'पभोषागिरि की शैलचित्रकला, सम्पूर्ण मानवता की विरासत' नाम से एक आलेख जैन कलादर्श में मार्च १९९७ में प्रकाशित हुआ। डॉ. लालमोहम्मद रिजवी ने अपने पत्र दिनांक १-५-१९९४ में लिखा था कि आदमगढ़ त्रैलाश्रयों में भगवान् पार्श्वनाथ के चित्र देखे गए हैं। आदमगढ़ की पहाड़ियां (गुफाऐं जैन शैलाश्रय) इटारसी और होशंगाबाद के

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