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तीर्थंकर पार्श्वनाथ : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में है कि बुद्ध के बाल्यकाल में भी निर्ग्रन्थ श्रावक विद्यमान थे तथा बुद्ध पार्श्वनाथ के चातुर्याम से न केवल परिचित थे किन्तु उन्होंने उसे ही विकसित करके अपने अष्टांगिक मार्ग का निर्धारण किया था। और उनके समय में पार्श्वनाथ के अनुयायी निर्ग्रन्थ वर्तमान थे।"१३ नागपुर विश्वविद्यालय में पालि एवं प्राकृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. भागचन्द्र जैन भास्कर ने 'जैनिज्म इन बुद्धिस्ट लिट्रेचर' शीर्षक अपने शोध-ग्रन्थ में निगंठनाथ पुत्र भगवान् महावीर से तीर्थंकर पार्श्वनाथ को २५० वर्ष पूर्व का स्वीकार किया है। इनका वंश उग्र और माता वामा तथा पिता अश्वसेन एवं उनके अन्य नामों का भी उन्होंने उल्लेख किया है। अनेक पालि ग्रन्थों के साक्ष्यों को देकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता पर विस्तृत प्रकाश डाला है ।१५ श्री अहिच्छत्र-पार्श्वनाथ पुस्तिका के सम्पादक श्री जिनेन्द्र सेवक ने पार्श्वनाथ से सम्बन्धित कुछ तिथियों का उल्लेख इस प्रकार किया है। ... १. लगभग ८७७ वर्ष ई.पू. वाराणसी नगरी में जन्म २. लगभग ८४७-४८ वर्ष ई.पू. श्रमण मुनि दीक्षा, अहिच्छत्र
आगमन, केवल ज्ञान प्राप्ति, हस्तिनापुर में पावन विहार ३. लगभग ८४७ से ७७७ वर्ष ई.पू. भारत के विविध महाजनपदों में
. जैन धर्म का प्रचार .. ४. लंगभग ७७७ वर्ष ई.पू. सम्मेद शिखर से मोक्ष प्राप्ति'६
' २३वें तीर्थंकर की प्रसिद्धि एवं ऐतिहासिकता के साक्ष्य के रूप में प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी में रचित चरित काव्यों को प्रस्तुत किया जा सकता है।१७ . डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन ने 'पासणाहचरिउ : एक समीक्षात्मक अध्ययन' शीर्षक शोध-प्रबन्ध सन् १९८८ ई. में प्रस्तुत किया था। महाकवि रधु के उक्त चरित काव्यं के कथानक को लेकर डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने उल्लेखनीय शोध कार्य किया है। उन्हों ने जैन शास्त्रों के प्रमाणानुरूप पार्श्वनाथ के २५० वर्ष पूर्व बीत जाने पर महावीर का जन्म हुआ माना है। वीर-निर्वाण संवत्
और ईसवी सन् में ५२७ वर्ष का अन्तर है। जैन शास्त्रानुसार अन्तिम तीर्थंकर महावीर की सम्पूर्ण आयु कुछ कम ७२ वर्ष की थी। इस प्रकार