Book Title: Tirthankar Parshwanath
Author(s): Ashokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharti

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Page 404
________________ प्रभु पार्श्व की कतिपय कलापूर्ण ऐतिहासिक प्रतिमायें ३४१ ... देव बड़े कलापूर्ण ढंग से अंकित है तथा पीछे अशोक वृक्ष का अंकन • कलात्मक है। (५) कलिग जिन (पार्श्वनाथ) - इनका कोई साहित्यिक प्रमाण तो नहीं है पर पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर इसे पार्श्वनाथ की प्रतिमा सिद्ध करते हैं। खण्डगिरि उदयगिरि की गुफाओं के पास एक अनन्त 'नाम की गुहा खण्ड है जिससे दरवाजे के खम्भों पर तीन फण वाले सर्पयुगल अंकित है जिससे सिद्ध होता है कि कलिङ्ग में पार्श्वनाथ की पूजा होती थी। मगध का राजा नन्दराज आक्रमण के साथ साथ कलिङ्ग जिन को भी साथ ले गया था। जब सम्राट खारवेल ने नन्दराज से कलिंग जिन वापस लेने के लिए युद्ध किया तो तत्कालीन राजाओं को परास्तकर बहुमूल्य रत्न, मणियां, सोना आदि पुष्कल द्रव्य साथ लाया था और केतुमद्र निर्मित नीम के लक्कड निर्मित प्रतिमा का जुलूस निकलवाया था। कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र ने त्रिषष्ठि शलाका चरित के ९३ पर्व के तीसरे सर्ग के ११ छन्द में कौशल देश का राजा प्रसेनजित नरवर्मन का पुत्र था। उसकी पुत्री प्रभावती अत्याधिक सुन्दर थी। वह पार्श्वप्रभु के गुण सुन कर उनके प्रति अनुरक्त हो गई और कौशलाधीश प्रसेनजित प्रभावती का पार्श्वनाथ के साथ विवाह के लिए तैयार हो गए। पर आस पास के राजाओं को यह स्वीकृत नहीं हुआ और कौशल पर आक्रमण कर दिया। तब प्रसेनजित ने पार्श्वप्रभु से सहायता मांगी तो उन्होंने विरोधियों को मार भगाया तथा प्रभावती से शादी करली। पर दिगम्बर आम्नाय में पार्श्वनाथ ब्रह्मचारी रहे। उन दिनों कलिंग के अधिपति यवन थे। यह तो सुप्रसिद्ध ही है कि सर्प पार्श्वनाथ का चिन्ह था अत: अनन्त गुम्फा और रानीगम्फा के दरवाजों पर सर्प और यवन सैनिकों का उत्कीर्णित होना स्पष्ट द्योतित करता है कि कलिंग जिन पार्श्वनाथ ही थे। कोई जिज्ञासु अनुसंधित्सु विद्वान कलिंग जिन पर शोध करता है तो इतिहास की श्रृंखला में बहुमूल्य योगदान होगा। डॉ. शाह की निम्न पंक्तियां अन्वेषकों को अत्यावश्यक है।

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