Book Title: Tirthankar Parshwanath
Author(s): Ashokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharti

Previous | Next

Page 368
________________ भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्तियों का वैशिष्ट्य डॉ॰ नरेन्द्र कुमार जैन* - स सत्य-विद्या-तपसां प्रणायक : समग्रधीरुग्रकुलाम्बरांशुमान । मया सदा पार्श्व जिनः प्रणम्यते, विलीनमिथ्यापथ - दृष्टिविभ्रमः । । जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ मूर्तिकारों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहे हैं । यहाँ तक कि बिना भ. पार्श्वनाथ की मूर्ति के जैन मन्दिरों की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जो नाग संसारी प्राणियों के लिए विषमय है वही नाग मूर्ति शिल्पियों के लिए शिवमय प्रतीत हुआ क्योंकि अन्य मूर्तियों की अपेक्षा भगवान् बाहुबली स्वामी की मूर्ति को छोड़कर भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति - छवि ऐसी थी जो सर्प से युक्त थी । सप्तफण से लेकर सहस्त्र फण तक की संरचना उनके शिल्पवैभव को • प्रस्फुटित कराने में समर्थ थी । • * भगवान् पार्श्वनाथ हमारी अविच्छिन्न तीर्थंकर परम्परा के दिव्य आभावान योगी ऐतिहासिक पुरुष हैं । सर्वप्रथम डॉ. हर्मन याकोबी ने 'स्टडीज इन जैनिज्म' के माध्यम से उन्हें ऐतिहासिक पुरुष माना। उनका कथन है कि परम्परा की अवहेलना किये बिना हम महावीर को जैन-धर्म का संस्थापक नहीं कह सकते। उनके पूर्व के पार्श्व (अन्तिम से पूर्व के तीर्थंकर) को जैन धर्म का संस्थापक मानना अधिक युक्तियुक्त है। पार्श्व की परम्परा के शिष्यों का उल्लेख जैन आगम ग्रन्थों में मिलता है । इससे स्पष्ट है कि पार्श्व ऐतिहासिक पुरुष हैं । २ उनकी ऐतिहासिकता एवं चिन्तामणि, पारसमणि, पतितपावन छवि, नाम प्रताप के कारण मूर्तिकार उनकी ओर आकृष्ट हुए । कविवर सनावद ( खरगौन )

Loading...

Page Navigation
1 ... 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418