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तीर्थकर पार्श्वनाथ उल्लेख है, परन्तु उसमें भी राजा विश्वसेन का भगवान् से विवाह करने के लिए कहने का उल्लेख नहीं है। शेष हरिवंश पुराण को
छोड़कर सब ग्रन्थों में यह उल्लेख है। १९. वादिराज सूरि के चरित्र में ज्योतिषी देव का नाम भूतानंद और शेष
ग्रंथों में शम्बर है। इस ग्रंथ में भगवान् के दीक्षा वृक्ष का भी नाम नहीं लिखा है। हरिवंश पुराण में उसका नाम धंव है। (पृ. ५.६७)। सकलकीर्ति और भूधरदास ने उसे बड़ का पेड़ कहा है। उत्तरपुराण
और चन्द्रकीर्ति ने केवल शिला का उल्लेख किया है. (चंद्रकांत शिलातके)। हरिवंश में दीक्षावन अश्ववन के स्थान पर मनोरम वन
२०. तीन सौ राजाओं के साथ दीक्षित होना भी वादिराज और गुणभद्राचार्य
ने नहीं लिखा है। शेष सभी ने लिखा है। जिनसेनाचार्य ने उनकी
संख्या ६०६ बतलाई है (८७५-७६)। . २१. पार्श्वनाथ पारण के लिए गुल्मखेटपुर में गए थें। यह बात उत्तरपुराण
(७३/१३२), वादिराज सूरि चरित (११/४५), सकलकीर्ति पुराण, चंद्रकीर्ति चरित (१२/१०) और भूधरदास, (८/३) ने स्वीकार की है। किंतु हरिवंश पुराण में यह काम्याकृत नगर बताया गया है (पृ.
५६९)। २२. दातार का नाम सकलकीर्ति और भूधरदास ने ब्रह्मदत्त लिखा है; किंतु
वादिराज ने धर्मोदय (११/४), गुणभद्राचार्य (७३/१३३), जिनसेनाचार्य
(पृ. १६९) और चन्द्रकीर्ति (१२/१३) ने धन्य राजा लिखा है। २३. केवलज्ञान की तिथि अन्य ग्रंथों में चैत्र कृष्णा चतुर्दशी लिखी है; परन्तु
हरिवंशपुराण में चैत्र बदी चौथ की दोपहर के पूर्व केवलज्ञान हुआ
लिखा है (पृ. ५६९)। २४. उत्तरपुराण , सकलकीर्ति कृत पुराण, चंद्रकीर्ति कृत चरित और
भूधरदास ग्रंथित पुराण में १६००० साधुओं की संख्या निम्न प्रकार है: