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प्रथमानुयोग में तीर्थंकर पार्श्वनाथ
२१५ 'स्वयंप्रभ' और उनके आगमन की सूचना माली द्वारा राजा के पास
पहुंचाने का विशेष उल्लेख हुआ है (स. २ श्लो. १०२)। ४. मरुभूति की मृत्यु उपरांत सल्लकी वन में हाथी उत्पन्न होने का
उल्लेख भी सभी में है। किंतु वादिराज सूरि के ग्रन्थ में विशेषरूप से उस हाथी के माता पिता का नाम वर्वरी और पृथ्वीघोष लिखा है (स.
३ श्लो' ३८-३९)। ५. राजा अरविंद के मुनि हो जाने पर उन्हें एकदा वैश्य संघ के साथ
तीर्थों की वन्दना निमित्त ज़ाते हुए और सल्लकी वन में शशिगुप्त आदि श्रावकों को उपदेश देते इस ग्रन्थ में लिखा है (स. ३ श्लो. ६१-६५), किन्तु सकलकीर्ति (२/१६-१७), गुणभद्र (७३/१४), चन्द्रकीर्ति (२४/२) के ग्रन्थों में उन्हें संघ सहित श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा के लिये जाते लिखा है। उत्तरपुराण (७३/२४), सकल कीर्ति के पार्श्वचरित (२/५३) में वज्र घोष गजराज के सहस्रार स्वर्ग में स्वयंप्रभ देव होते लिखा है, . किन्तु वादिराज सूरि ने उसे महाशुक्र स्वर्ग में शशिप्रभ देव लिखा
है (३/१०८)। ७. इन्होंने लोकोत्तमपुर के राजा का नाम विद्युद्वेग और उसके पुत्र का
नाम रश्मिवेग लिखा है (४/२७), किन्तु उत्तरपुराण (७३/२४-२५), सकलकीर्ति (२/१०), चंद्रकीर्ति (३/१४०) और भूधरदास (२/६९-७१) ने. राजा का नाम विद्युत गति और पुत्र का नाम अग्निवेग बताया है। चन्द्रकीर्ति ने पिता की आज्ञानुसार अग्निवेग का किसी विद्याधर से
संग्राम का भी उल्लेख किया है (५/४)। ८.. वादिराज सूरि के ग्रंथ में विजया रानी के सबको विजय करने वाला
दोहला होते लिखा है (४/१२-१४)। किन्तु उत्तरपुराण में न तो दोहला है और न स्वप्नों का उल्लेख है (७३/३१-३२), किन्तु शेष सभी में स्वप्न देखने का उल्लेख है।