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तीर्थंकर पार्श्वनाथ ___भ. पार्श्व का वर्ण अधिकांश कवियों ने श्याम वर्ण माना है। उनका वंश उग्रवंश था जब पार्श्वप्रभु का जन्म हुआ तो इन्द्र ने आकर जन्म कल्याणक का उत्सव मनाया तथा उनकी पूजा-अर्चना की।१०
भगवान् ने लकड़ी में जलते हुए नागनागिन को बचाकर उन्हें मंत्र सुनाया जिससे वे दोनों स्वर्ग में धरणेन्द्र एवं पद्मावती हुए।' कवियों ने वर्णन किया है कि :(क) जुगल नाग जिन जरत उबारे,
संकट दाह हरन की। सरन मोहि पास जिनंद सरन की। (ख) जुगलनाग जिन जरत उबारे.
मन्त्र सुनायो नवकारी हो तिन प्रसाद धरणेन्द्र पद्मावती
पायो पट सुभकारी हो।१३. (ग) जिन्ह के वचन उर धारत जुगल नाग,
भये धरनिन्द पद्मावती पलक में। (घ) तौरि बिजमति करै इकचित्त सुसेवक तै धरणिंदा है।
तै जलती आगि निकाल्या नाग किया वम्माग सुरन्दा है ।१५
तौ चरणं आय रहूं लिपटां इकला अति केलि करंदा है ।१५ (ङ) जुगल नाग जलते नौ दित्ता धरनि
ईस अधिकार, जग तेडा द्वारा कहंबा ।
प्रभु पारस अब चाह नदी वार ।१६ (च) नाग इस नागिन • दयो नागराज पद
करूणा करि तारे ते कैते नारि नरो है।७ इस प्रकार पार्श्व प्रभु ने नाग-नागिन का उद्धार किया।
जब पार्श्वप्रभु तपस्यारत थे तभी कमठ के जीव शंबर देव ने उन पर घोर उपसर्ग किया जिससे धरणेन्द्र ने आकर भगवान् के सिर पर सर्पफण