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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
देव देवी जिन देखे, नरनाथ भी विशेषे, मै मरै के अलेषे, आस तोष रीति की । और काह न मनावूं जिन चरण चित्त लावूं, नितप्रति जस गावूं, मल मैल गीज की ।
भव संकट से हरण, अमर तारण तरण, परयो पारस शरण, और कीजे मो ग़रीब की । ४५
उक्त चित्रण को देखते हुए जो जन कुदेव, कुशास्त्र, कुगुरु पूजन-भजन में संलग्न हैं उन्हें सुमार्ग पर आना चाहिए । भला, हम सोचें कि जो कार्य त्रैलोक्य धनी तीर्थंकर पार्श्व प्रभु की भक्ति नहीं दे सकती उसे अंकिंचन स्वर्गादिक के देव या नश्वरं सम्पदा के धनी पुरुष कैसे दे सकते हैं?
भगवान् पार्श्वनाथ से भक्त की पुकार
कविवर जगतराम कहते हैं - हे प्रभु तुम्हारा नाम पतितपावन है और मुझे कर्मों ने घेर लिया है। मैं पतित हूं तुम पतितों का उद्धार करने वाले हो, यह तुम्हारी प्रतिज्ञा के निर्वाह का समय है । तुमने अनेक पतितों का उद्धार किया है, तुम्हारे आधे नाम ने ही उन्हें भव समुद्र के पार लगा दिया। इसी कारण हे पार्श्व प्रभु मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप साहिब ( रक्षक) हैं और मैं आपका दास हूं । यथा
पतित पावन नाम तेरो
सो प्रभु कर्म धेरयो तन मेरो ।
हों पतिति तुम पतित उधारन लाज विरद को वेरो । पतित । । और पतित अनेक उधारे उर्द्धनाम कियौ जु निवेरो । यातैं सरन पारस अब तेरो, तू साहिब हो चेराळे । पतित। ४६