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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
भक्त कवियों के लिए भगवान् पार्श्वनाथ सर्वाधिक इष्ट रहे हैं। उनका विश्वव्यापी प्रभाव, जन कल्याणी छवि, निरीह नाग-नागिन, जिन्हें लोग दुष्ट की संज्ञा देते हैं, उन्हें भी उपकृत करने वाला परोपकारी व्यक्तित्व, कामविजयी, क्षमाशील, घोरोपसर्गजयी, सिद्धपुरुष की छवि, ये सब ऐसे गुणात्मक कारक थे जिनसे भक्त कवियों की लेखनी को नवरूप मिला, फलत: अनेक रचनायें सृजित हुई जिनमें भगवान्. पार्श्वनाथ का जीवन चरित एवं उनके प्रति भक्तिभावना मूर्तरूप लेकर प्रकट हुई हैं।
इस “तीर्थंकर पार्श्वनाथ भक्ति गंगा” में भगवान् पार्श्वनाथ सम्बन्धी निम्न तथ्य एवं भावनायें प्रकट हुई हैं ।
किसके हरिहर किसके ब्रह्मा किसके दिल में रामं। मोरा दिल में तु वस्यौं साहिब शिव नौ ठांम।। । माता वामा धन्न पिता जसुश्री अश्वसेन नरेश।
जनमपुरी बानारसी धन-धन कासी देस।। . अर्थात् किसी के दिल में हरिहर (विष्णु), किसी के दिल में ब्रह्मा और किसी के दिल में राम रहते हैं, किन्तु मेरे दिल में शिवरूप हे पार्श्वनाथ! आप रहते हैं। आपकी माता वामादेवी और आपके पिता नरेश अश्वसेन धन्य हैं, जिन्होंने ऐसे पुत्र को जन्म दिया। वह नगरी वाराणसी और वह काशी देश भी धन्य है जहाँ आपका जन्म हुआ।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ जीवन चरित
भ. पार्श्वनाथ के प्रति मन-वचन-काय से अनुरक्त भक्त कवियों ने भगवान् पार्श्व के जीवन चरित को बड़े ही अनुराग से शब्दों के सांचे में ढाला है। श्री किशन सिंह ने इस एक ही पद्य में भ.. पार्श्वनाथ प्रभु के जीवन चरित को शब्दांकित किया है।- ,
अश्वसेन नृप पिता देवी वामा सुमाता। हरितकाय नव हाथ वरषशस्त आयु विख्याता।।