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तीर्थंकर पार्श्वनाथ की गई है। पार्श्वनाथ को जैन लोक देवता के रूप में पहले भी माना जाता था और आज भी माना जा रहा है।
संदर्भ
१. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री,
भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी, पृ. ५५१ . २. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री,
भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी, पृ. ५५१ उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन २९ सूत्र १४ अनु. मुनि नथमल, प्रका. जैन श्वेताम्बर
तेरापथी सभा, कलकत्ता । ४. स्वयम्भू स्तोत्र २१/१ ५. स्तुति विद्या, भूमिका, पृष्ठ १० ६. भक्तामर स्तोत्र, ३ ७. स्तुति विद्या, १ ८. भक्तामर स्तोत्र, श्लोक ०७ ९. कल्याण मंदिर स्तोत्र, पद्य संख्या ८. १०. ये भद्रबाहु श्रुतकेवली भद्रबाहु से भिन्न माने गये हैं। ११. कल्याण मंदिर, पद्य ३. १२. कल्याण मंदिर, पद्य ३८. .