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- तीर्थंकर पार्श्वनाथ में ७ श्रीधर विद्वानों का उल्लेख मिलता है कवि श्रीधर विवुध की माता का नाम वील्हा और पिता का नाम वुधगोल्ह था। पार्श्वनाथ चरित (पासणाहचरिउ) में कवि ने ग्रन्थ का रचनाकाल अंकित किया है अत: इनका समय विवादास्पद नहीं है पासणाहचरिउ की रचना वि. सं. ११८९ (११३२ ईस्वी) में मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी रविवार को पूर्ण हुई थी।
४. पासणाहचरिउ - देवचन्द्र
प्रस्तुत पासणाहचरिउ में ९९११ संधियां और २०२ कडुवक हैं। देवचन्द्र ने अपभ्रंश में लिखित इस कृति में पार्श्वनाथ भगवान के पूर्वभवों के साथ उनके जीवन पर प्रकाश डाला है। ग्रन्थ अद्यावति अप्रकाशित है. इसकी हस्तलिखित प्रति प. परमानन्द शास्त्री के निजि संग्रह में है। इसका लेखन काल वि. सं. १५४९ (१४९२ ई.) है। इसी की एक प्रति पासपुराण नाम से सरस्वती भवन नागौर में भी है। इनका रचना काल वि.स. १५२० (१४६३ ई.) है। प्रतिपूर्ण है।
५. पासणाहचरिउ – रइधु
इसकी कथावस्तु ७ सन्धियों में विभक्त है। रइधु की समस्त कृतियों में अपभ्रंश भाषा का यह काव्य श्रेष्ठ सरस एवं रुचिकर है। इसमें संवाद प्रस्तुत करने का ढंग बड़ा ही सुन्दर तथा नाटकीय है। ये. संवाद पात्रों के चरित्र चित्रण में प्रर्याप्त सहायक सिद्ध होते हैं। रइधु के पासणाहचरिउ की अनेक हस्तलिखित प्रतियां कोटा, व्यावर, जयपुर, आगरा के ग्रन्थ भण्डारों में भरी पड़ी हैं जिससे इस ग्रन्थ की लोकप्रियता और महत्ता का सहज ही अनमान लगाया जा सकता है। डॉ. राजारामजी जैन ने इनका समय वि. सं. १४५७-१५३६ (१४००-१४७९ ई.) माना है।
६. पासणाहचरिउ - असवालकवि
अपभ्रंश भाषा में निबद्ध ग्रन्थ १३ सन्धियों में विभक्त है। कथावस्तु परम्परागत है। इसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का पूर्व ९ भवों सहित वर्णन किया