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मराठी साहित्य में तीर्थंकर पार्श्वनाथ
- डॉ. पद्मजा पाटिल
प्रस्तावना
. आजतक बहुत से पाश्चात्य व भारतीय संशोधकों का संशोधन क्षेत्र उत्तर भारत और राजस्थान में जैनधर्म व साहित्य' तक ही सीमित रहा है। तामिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक में भी जैन धर्म व प्रादेशिक जैन साहित्य' पर खोज जारी है। कुल मिलाकर जैन लोकसंख्या केंद्रित है दक्षिण महाराष्ट्र में। किंतु दक्षिण व उत्तर महाराष्ट्र में “जैन परंपराएँ और मराठी जैन साहित्य" जैसे विषय उपेक्षित हैं। महावीर और गौतम बुद्ध ने लोकभाषा के माध्यम से बहुजन समाज से सामीप्य बनाया। जैनों की अर्धमागधी का दूसरा नाम है महाराष्ट्री। जैन साहित्य का महाराष्ट्र से कितना निकट संबंध है इसका पता इससे चलता है। मराठी के बनाव-सिंगार में प्राकृत जितना ही महाराष्ट्री का महत्वपूर्ण सहयोग है।
- १५वी सदी के पूर्व का मराठी जैन साहित्य उपलब्ध नहीं है किंतु बाद में अनेक पुराण, काव्य व दूसरे वाड्.मय का जैनों ने धर्मप्रसार के लिए निर्माण किया। फिर भी भ. पार्श्वनाथ पर मराठी साहित्य बहुत ही कम है। मेरी कोशिश से जो साहित्य प्राप्त हुआ उसके सहारे "मराठी साहित्य में पार्श्वनाथ तीर्थंकर" यह शोध पत्र आपके सामने सादर प्रस्तुत कर रही हूं।
दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रसार - दक्षिण भारत में जैन ऐतिहासिक परम्पराऐं अत्यन्त प्राचीन व महत्वपूर्ण हैं। इनका आरंभ श्रवणबेळगोळ शिलालेखों से पता चलता है जो
* अधिव्याख्याता, इतिहास विभाग शिवाजी विद्यापीठ, कोल्हापुर