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मराठी साहित्य में तीर्थंकर पार्श्वनाथ
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१. मुंबई वस्तु संग्रहालय की पार्श्वनाथ जी की धातु मूर्ति मौर्य कालीन मानी जाती है।
२. एलोरा की गुफाओं में पार्श्वनाथ जी की मनोरम मूर्ति है ।
३. नासिक, तेरापुर, ऐहोळ, अंकाई-टंकाई आदि अनेक प्राचीन गुफाओं, लेणों में पार्श्वनाथ तीर्थंकर की मूर्तियां दिखती हैं ।
४. सोलापूर से कुंथलगिरी मार्ग पर उस्मानाबाद के पास धाराशिव है जिसके नजदीक ही तेरागांव है जहाँ प्राचीन जिन मंदिरों में भ. पार्श्वनाथ जी की मूर्ति है । कुल चार गुफाओं में पार्श्व प्रतिमाएं हैं। हाल ही में कुंथलगिरि में पार्श्वनाथ की विशालकाय मूर्ति स्थापित की गयी है।
५. कुंडल (सांगली) में कलीकुंड पार्श्वनाथ मूर्ति है जिस पर तीर्थराज कुंडल नामक पुस्तक बाबूराव भरमा मगदूम ने मराठी में प्रकाशित की है।
६. शिरपुर (जि. अकोला) अंतरिक्ष पार्श्वनाथ अधर पार्श्व मूर्ति पद्मासनस्थ है। हाथ का तलवा नीचे से सहज में जाता है ।
७. चिंतामणि पार्श्वनाथ की मूर्ति कचनेर में है ।
८. वंशी स्थान की वशी पार्श्वनाथ मूर्ति (इस्लामपुर- महाराष्ट्र) के पास
है ।
इनके अतिरिक्त अनेकानेक मंदिरों में पार्श्वनाथ की मूर्तियां पायी जाती हैं।
निष्कर्ष :
उत्तर से दक्षिण आने वाले व्यापारी मार्गो पर प्रमुखतः विख्यात पार्श्वनाथ की मूतियां पायी जाती हैं। इससे यह मालूम होता है कि दक्षिण में यवनों के आक्रमण से पहले उ. महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर जैन धर्म प्रसार और पार्श्वनाथ का महत्व रहा । कालिका पुराण से भी इस बात का