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तीर्थंकर पार्श्वनाथ है। पद्मकीर्ति ने भीमाटवी-२ वन में और यतिवृषभ ने शक्रपुर में उक्त ज्ञान प्राप्त होने का उल्लेख किया है।
छद्मावस्था
यहां यह भी विचार कर लेना आवश्यक है कि कितने समय तक तप करने के पश्चात् भ. पार्श्वनाथ को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। पदमकीर्ति और रइधु इस सम्बन्ध में मौन हैं। आ. पुष्पदन्त ने यतिवृषभ और गुणभद्र की तरह उल्लेख किया है कि चार माह तक तप करने के पश्चात् उन्हें केवलज्ञान मिला था।८३
कमठ का भयभीत होना और पार्व की शरण में जाना .
जब कमठ को ज्ञात हुआ कि भ. पार्श्वनाथ को केवलज्ञान मिल गया है तो उसके मन में भयमिश्रित चिन्ता हुई।४ पद्मकीर्ति और रइधु५ ने कहा है कि जब कमठासुर की इन्द्र के वज्र से कहीं भी. रक्षा न हुई तो वह भगवान पार्श्वनाथ की शरण में गया। उन्हें प्रणाम कर वह भय मुक्त हो गया। उसने क्षमा याचना करते हुए अनेक प्रकार से अपनी गर्दा की और हर्षित मन से सम्यक्त्व ग्रहण कर समस्त पाप-दोषों से मुक्त हो गया। उसका कुमति ज्ञान भी नष्ट हो गया। ..
श्रमण संघ
भगवान् पार्श्वनाथ का संघ विशाल होने का उल्लेख. हुआ है। सर्वप्रथम हस्तिनापुर के राजा स्वयंभू दीक्षा ले कर प्रथम गणधर बना और उसकी पुत्री प्रभावती (मरुभूति की वसुन्धरी पत्नी) जिन दीक्षा ले कर आर्यिका संघ की प्रधान आर्यिका हुई। यद्यपि इस सम्बन्ध में यतिवृषभ और गुणभद्र से मतभिन्नता प्रकट है। क्योंकि यतिवृषभ सुलोका को और गुणभद्र ने सुलोचना" को प्रधान आर्यिका माना है। उनके चतुर्विध संघ में श्रमण, आर्यिका, श्रावक और श्राविकाओं की संख्या ९ निम्नांकित है :