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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
भ. पार्श्वनाथ संबंधी मराठी हस्तलिखित प्रतियाँ
ग्रंथ
शिरड
कर्ता
गांव हस्तलि. क्र. १. पद्मावती आरती रामकिर्ती नागपुर ५ २. पद्मावती पाळणा देवेंद्रकिर्ती (शिष्य) जिंतुर ३. पार्श्वनाथ आरती तानु पंडित . शिरड . . ३.. ४. पार्श्वनाथ आरती पद्मकिर्ती सोलापूर ४ ५. पार्श्वनाथ आरती राया ६. पार्श्वनाथ भवांतर . गंगादास नागपुर: ५ ७. पार्श्वनाथ भवांतर मेघराज .. शिरड ३
इसके अलावा जैनेतरों का मराठी साहित्य का अध्ययन करने पर उपरोल्लेखित लेखकों के सिवा पार्श्वनाथ जी पर विशेष साहित्य नहीं पाया जाता। पूना के डेक्कन इन्स्टिटयूट व कुछ और जगहों के प्राचीन इतिहास संशोधन में पार्श्वनाथ जी का उल्लेख पाया जाता है। मराठी अभ्यासक्रम में पार्श्वनाथ २३ वे तीर्थंकर थे, वे महावीर के पूर्व हुए और उनका "चातुर्याम धर्म" इतना ही उल्लेख मिलता है। ,
मूर्ति व भ. पार्श्वनाथ की लोकप्रियता
विपुल मूर्तिकला यह जैनों की एक और विशेषता है। पाषाण मूर्तियों की भग्नता की आशंका से प्राचीन काल से ही जैनों ने धातु की मूर्तियाँ बनायीं। यही मूर्तियां आज महाराष्ट्र में पार्श्वनाथ जी का स्थान व लोकप्रियता, ऐतिहासिक दृष्टि से साबित कर रही हैं। कलाशैली की दृष्टि से इन मूर्तियों पर द्रविड कला की छाप दिखाई पड़ती है। मूर्ति पर का नाग फण व दूसरे तीर्थंकरों से अलगता में पार्श्वनाथ जी की मूर्तियां संख्या में अधिक पायी जाती हैं। इसमें पद्मावती की लाकप्रियता का हिस्सा भी अधिक