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अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ
१४७ किया। इसलिए सहस्रार, अच्युत, मध्यप्रैवेयक और प्राणत स्वर्गों में उत्पन्न होकर स्वर्गों के सुखों को भोगते हुए वे तीर्थंकर हुए और अन्त में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। उक्त भवों का वर्णन पुष्पदन्त ने ९४वी संधि में किया
__पुष्पदन्त ने उक्त कथा के प्रसंग में पार्श्वनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा
और निर्वाण सम्बन्धी महत्वपूर्ण तिथियों का उल्लेख किया जिनकी चर्चा यथा स्थान की जायेगी।
२. देवदत्त कृत पासणाहचरिउ
डॉ. देवेन्द्र कुमार ने अपने ग्रंथ 'अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियों में उल्लेख किया है कि अपभ्रंश भाषा के ख्याति प्राप्त देवदत्त ने 'पासणाह चरिउ' नामक ग्रन्थ की रचना की थी, जो अब अनुपलब्ध है। जंबूस्वामी चरिउ से ज्ञात होता है कि देवदत्त 'वीर कवि' के पिता और लावर्ड गोत्री थे। इन्हों ने वरंगचरिउ' का उद्धार किया था। लेकिन जंबूस्वामि चरिउ में ‘पासणाहचरिउ' का उल्लेख नहीं है, इससे सिद्ध होता है कि वीर कवि के पिता देवदत्त ने पासणाहचरिउ की रचना नहीं की। यदि उन्होंने पासणाहचरिउ' की रचना की होती तो उसका भी उल्लेख अवश्य हुआ होता। इस से सिद्ध होता है कि 'पासणाह चरिउ' के प्रणेता 'वरंगचरिंउ' के उद्धारक देवदत्त से भिन्न हैं।
३. सागरदत्त सूरि कृत पास पुराण _ वि.सं. १०७६ में सागरदत्त सूरि ने ग्यारह संधियों में पास पुराण की रचना की थी, जो अद्यतन अनुपलब्ध है।१४
४. आचार्य पद्मकीर्ति कृत पासणाहचरिउ
वि.स. ११३४ (शक सं. ९९९) में पद्मकीर्ति ने 'पासणाहचरिउ' . नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इनके संबंध में केवल इतना ही ज्ञात है