________________
१३७
मराठी साहित्य में तीर्थंकर पार्श्वनाथ म. पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता और लेखन
भ. महावीर के पूर्व भ. पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक व्यक्ति हये यह सर्वमान्य बात है। केवल ज्ञान प्राप्ति के पश्चात आर्यखंड में तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी ने समवशरण विहार किया। कोशलपुर, पांचालदेश, महरत देश (महाराष्ट्र), मारवाड, मगध, मालवा, अवन्ती, उज्जैनी आदि अनेक देशों में मंगल विहार के साथ धर्मोपदेश व जैन धर्म प्रसार किया। डॉ. ए. एम. घाटगे (कोल्हापुर), डॉ. माधव रणदिवे (सातारा)१२, इतिहास संशोधक धर्मानंद कोसंबी आदि ने “पार्श्वनाथ जी का चातुर्याम धर्म"१३ इस प्रकार के जैन व जैनेतर संशोधकों के लेख पार्श्वनाथ जी के चातुर्याम धर्म के बारे में बीसवी सदी में मराठी में लिखे।
भ. पार्श्वनाथ के ऊपर मराठी साहित्य
- उपलब्ध मराठी साहित्य में भ. पार्श्वनाथ व पद्मावती संबंधी साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है। : (अ) मेघा उर्फ मेघराज नामक कवि १६वीं सदी के प्रारंभ में ही हुये।
उन्होंने पार्श्वनाथ भवांतर' नामक ४७ पदों का गीत लिखा। आरंभ में
और अंत में अंतरिक्ष पार्श्वनाथ जी की शिरपुर अधर मूर्ति का उल्लेख है। • वह मूर्ति देखकर ही उन्होंने यह रचना की होगी। पार्श्वनाथ जी को उनकी .माता वामादेवी विवाह का आग्रह करती है तभी सांसारिक भोगोपभोगों का निरुपयोगित्व पढ़ाने के लिए उन्होने अपनी माता से अपने पिछले भवों की जानकारी दी, यही है 'पार्श्वनाथ भवांतर' ।१४ (ब) तीर्थंकर स्तुति, आदि काव्य प्रकारों की तरह जैन कवियों ने 'भारुड', डफगीत मतलब शाहिरी भेदक मोड के काव्य और 'लावणीयों' की भी रचना की। १७वीं सदी के अंत में गंगाराम नामक जैन कवि ने ४७ पदों का “पार्श्वनाथ भवांतर" नामक डफकाव्य रचा। उसमें पार्श्वनाथ के पिछले ९ भवों का वर्णन किया है। असल में गुजराती होकर भी कारंजा के भट्टारक धर्मचन्द जी के वे अनुयायी थे। गंगादास जी इसे 'कीर्तन'