________________
१११
तीर्थंकर पार्श्वनाथ तथा नाग जाति किसी आर्य नरेश से पराजित होकर लंका छोड़ पाताल (अफ्रीका) चले गये। इन तीनों भाइयों के नाम पर आज भी माली, सुमाली तथा मलानी (माल्यवान) देश अफ्रीका में हैं।
मिस्र के बारहवें वंश के इतिहास में उल्लिखित है कि मिस्र को उस समय एक अज्ञात वंश की जाति ने जीत लिया, जिसका नाम हिक्सास (यक्ष - राक्षस) था। ये लोग पूर्व (भारत) से आये थे। इस यक्ष जाति के लगभग दो सौ शासकों ने मिस्र में १५९० वर्ष शासन किया। रामायण के वर्णन को इस ऐतिहासिक वर्णन से मिलाने पर निश्चित हो जाता है कि भारत से भागकर यक्ष-राक्षस ही अफ्रीका के मिस्र आदि देशों को रौंदते हुये वहां शासन करने लगे और बस गये। भारतीय ऐतिहासिक गणना से यह घटना आज से लगभग ७२०० वर्ष पूर्व की है।" - मिस्र का प्रथम राजवंश नाग था। शिशुमार इसका प्रारंभिक राजा था। इसका पुत्र नागराज, के नाम से प्रसिद्ध हुआ - उसको स्कोर्पियन भी कहा जाता है। इस वंश के सभी राजाओं को 'अह' (अहि) कहा जाता था। पुराणों से स्पष्ट है कि नाग पुरुषों को अहि, सर्प, नाग आदि भी कहा जाता था।
साइक्लोपीडिया ऑफ इण्डिया' भाग-११, पृष्ठ १०४२ के अनुसार तो नाग वंश का उत्तरी अमेरीका तक प्रभाव था। आबी डमीनेक ने लिखा है कि उत्तरी अमेरीका में शक जातीय नाग वंश का आविर्भाव हुआ था। इस नाग वंश ने लिदीयानों का राज्य भी जीत लिया था।६।। ___डॉ. हेनरिक जिम्मर ने “फिलॉसफीज ऑफ इण्डिया” नामक ग्रन्थ में सीरिया से प्राप्त ईसा पूर्व १४५० की मुद्रा का वर्णन किया है। इस मुद्रा पर अंकित एक खड़ी हुई मूर्ति है तथा साथ में सर्प है। यह मूर्ति भगवान् पार्श्वनाथ की (सर्प युक्त) मूर्ति से साम्य रखती है। इस मूर्ति से दो बातें सिद्ध होती हैं। एक तो यह कि सीरिया में ई.पूर्व १४५० से पहले दिगम्बर योगी थे तथा दूसरे वे नागों से संबंधित थे। हमें तो लगता है कि यह मूर्ति